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न ही अपने
सद्यःजात शिशु का भक्षण वहीं कुम्भ पर कछुवा और खरगोश का चित्र साधक को साधना की विधि बता सचेत करा रहा है।
कछुवा धीमी अपनी चाल चलता । .गाय के भीतर लय तक जा चुका है,
और खरगोश-धावमान होकर भी बहुत पीछे रह चुका है कारण विदित ही हैएक की गति अविरल थी एक ने पथ में निद्रा ली थी, प्रमाद पथिक का परम शत्रु है।
अब दर्शक को दर्शन होता हैकुम्भ के मुखमण्डल पर 'ही' और 'भी' इन दो अक्षरों का। ये दोनों बीजाक्षर हैं, अपने-अपने दर्शन के प्रतिनिधित्व करते हैं।
'ही' एकान्तवाद का समर्थक है
'भी' अनेकान्त, स्यावाद का प्रतीक । हम ही सब कुछ हैं यूँ कहता है 'ही' सदा, तुम तो तुच्छ, कुछ नहीं हो!
और, "भी' का कहना है कि हम भी हैं
172 :: मूक माटी