________________
श्वान-सभ्यता-संस्कृति की इसीलिए निन्दा होती है
वह अपनी जाति को देख कर धरती खोदता, गुर्राता है। सिंह अपनी जाति में मिल कर जीता है, राजा की तन्ति ऐसी ही होती है. होना भी चाहिए।
कोई-कोई श्वान पागल भी हुआ करते हैं
और वे जिसे काटते हैं वह भी पागल हो श्वान-सम भौंकता हुआ नियम से कुछ ही दिनों में मरता है, परन्तु कभी भी यह नहीं सुना कि
सिंह पागल हुआ हो। श्वान-जाति का एक और अति निन्द्य कर्म है, कि जब क्षुधा से पीड़ित हो खाद्य नहीं मिलने से मल पर भी मुँह मारता है वह,
और जब मल भी नहीं मिलता "तो. अपनी सन्तान को ही खा जाता है,
किन्तु, सुनो ! भूख, मिटाने हेतु सिंह विष्ठा का सेवन नहीं करता है
मूक पाटी :: 171