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फिर क्या बताना ! ३६ के आगे एक और तीन की संख्या जुड़ जाती है, कुल मिलाकर तीन सौ त्रेसठ मतों का उद्भव होता है जो परस्पर एक-दूसरे के खून के प्यासे होते हैं जिनका दर्शन सुलभ है आज इस धरती पर ।
कुम्भ पर हुआ वह सिंह और श्वान का चित्रण भी बिना बोले ही सन्देश दे रहा हैदोनों की जीवनचर्या-चाल परस्पर विपरीत है। पीछे से, कभी किसी पर धावा नहीं बोलता सिंह, गरज के बिना गरजता भी नहीं,
और बिना गरजे किसी पर बरसता भी नहींयानी
मायाचार से दूर रहता है सिंह। परन्तु, श्वान सदा पीठ-पीछे से जा काटता है, बिना प्रयोजन जब कभी भौंकता भी हैं।
जीवन-सामग्री हेतु दीनता की उपासना
मूक माटी : 169