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परस्पर मिलाने पर ज्यों की त्यों E की संख्या ही शेष रहती है... यथा : t. x २ = १८, १ . ८ .. ६. Ex ३ = २७, २ + ७ = ६ ६ x ४ = ३६, ३ + ६ = . इसी भाँति गुणन-क्रम
की संख्या तक ले जाइए और आएगी, रहेगी, दिखेगी केवल #
यही कारण है कि ८६ वह विघन-माया छलना है, क्षय-स्वभाव वाली है और अनात्म-तत्त्व की उद्योतिनी है; और E की संख्या यह सघन छाया हैं पलना है, जीवन जिसमें पलता है अक्षय-स्वभाव वाली है अजर-अमर अविनाशी आत्म-तत्त्व की उद्बोधिनी है
विस्तरेण अलम् । संसार हF का चक्कर है यह कहावत चरितार्थ होती है इसीलिए भविक मुमुक्षुओं की दृष्टि में ff हेय हो और ध्येय हो E नव-जीवन का स्रोत !
पूक माटी :: 167