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धृत से भरा घट-सा
बड़ी सावधानी से शिल्पी ने चक्र पर से कुम्भ को उतारा, धरती पर !
दो-तीन दिन का अवकाश मिला
सो कुम्भ का गीलापन मिट-सा गया"
सो कुम्भ का ढीलापन सिमट-सा गया।
आज शिल्पी को बड़ी प्रसन्नता है
कुम्भ को उठा लिया है हाथ में । एक हाथ में सोट लिया हैं एक हाथ की कुम्भ को ओट दी है और
कुम्भ की खोट पर चोट की है।
हाथ की ओट की ओर देखने से दया का दर्शन होता है, मात्र चोट की ओर देखने से निर्दयता उफनती - सी लगती है
परन्तु,
चोट खोट पर है ना !
सावधानी बरत रही है;
शिल्पी की आँखें पलकती नहीं हैं तभी "तो"
इसने कुम्भ को सुन्दर रूप दे घोट-घोट किया है
कुम्भ का गला न घोट दिया !
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मूकमाटी : 16.3
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