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उसके उपयोग में
आकृत होता हैं कुम्भ का आकार । प्रासंगिक प्राकृत हुआ, ज्ञान ज्ञेयाकार हुआ, और ध्यान ध्येयाकार :
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मन का अनुकरण तन भी करता है, कुम्भकार के उभय कर
कुम्भाकार हुए,
प्राथमिक छुवन हुआ माटी के भीतर अपूर्व पुलकन
आत्मीयता का अथ सा लगा।
लो, रह-रह कर
तरह-तरह की माटी की मंजुल छवियाँ उभर उभर कर ऊपर आ रहीं, क्रम-क्रम से तरंग-क्रम से रहस्य की घूँघट में निहित थीं...जो चिर से !
रहस्य की घूँघट का उद्घाटन पुरुषार्थ के हाथ में है रहस्य को सूँघने की कड़ी प्यास उसे ही लगती है जो भोक्ता संवेदनशील होता है, यह काल का कार्य नहीं है,
जिसके निकट पास
करण यानी कर नहीं होता है
वह परं का कुछ न करता, न कराता । जिसके पास
चरण चर नहीं होता है
वह स्वयं न चलता पद भर भी
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मूक पाटी : 163