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कुलाल-चक्र यह, वह सान है जिस पर जीवन चढ़ कर अनुपम पहलुओं से निखर आता है,
पावन जीवन की अब शान का कारण है। हों ! हाँ ! तुम्हें जो चक्कर आ रहा है उसका कारण कुलाल-चक्र नहीं, वरन् तम्हारी दृष्टि का अपराध है वह । क्योंकि परिधि की ओर देखने से चेतन का पतन होता है और परम केन्द्र की ओर देखने से चेतन का जतन होता है। परिधि में भ्रमण होता है जीवन यूँ ही गुजर जाता है, केन्द्र में रमण होता है जीवन सुखी नज़र आता है।
और सुनो, यह एक साधारण-सी बात है कि चक्करदार पथ ही, आखिर गगन चूमता अगम्य पर्वत-शिखर तक पथिक को पहुँचाता है बाधा-बिन वेशक !"
अब, सहजरूप से सर्व-प्रथम संकल्पित होता है शिल्पी,
12 :: मुक मारी