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बोल-चाल की भाषा में इस सूत्र का भावानुवाद प्रस्तुत है : आना, जाना, लगा हुआ है आना यानी जनन-उत्पाद है जाना यानी मरण-व्यय हैं लगा हुआ यानी स्थिर-धौव्य है
और है यानी चिर-सत् यही सत्य है यही तथ्य!
इससे यह और फलित हुआ, कि देते हुए श्रय परस्पर में मिले हैं ये सर्व-द्रव्य पय-शक्कर से घुले हैं शोभे तथापि अपने-अपने गुणों से छोड़े नहीं निज स्वभाव युगों-युगों से । फिर कौन किसको कब ग्रहण कर सकता है ? फिर कौन किसका कब
हरण कर सकता है? अपना स्वामी आप है अपना कामी आप है। फिर कौन किसका कब भरण कर सकता है?
फिर भी, खेद है ग्रहण-संग्रहण का भाव होता है सो भवानुगामी पाप है। अधिक कथन से विराम हो आज तक यह रहस्य खुला कहाँ ? जो 'है' वह सब सत्
मूक माटी :: 185