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तुम भी हो सब कुछ !
'ही' देखता है हीन दृष्टि से पर को 'भी' देखता है समीचीन दृष्टि से सब को, 'ही' वस्तु की शक्ल को ही पकड़ता है।
'भी' वस्तु के भीतरी भाग को भी छूता है, 'ही पश्चिमी सभ्यता है 'भी' है भारतीय संस्कृति, भाग्य-विधाता। रावण था 'ही' का उपासक राम के भीतर 'भी' बैठा था वही कारण है कि राम उपास्य हुए, हैं, रहेंगे आगे भी।
'भी' के आस-पास बढ़ती-सी भीड़ लगती अवश्य, किन्तु भीड़ नहीं,
'भी' लोकतन्त्र की रीढ़ है। लोक में लोकतन्त्र की नोड़ तब तक सुरक्षित रहेगी जब तक 'भी' श्वास लेता रहेगा। 'भो' से स्वच्छन्दता-मदान्धता मिटती है स्वतन्त्रता के स्वप्न साकार होते हैं, सविचार सदाचार के बीज 'भी' में हैं, 'ही' में नहीं।
प्रभु से प्रार्थना है, कि 'ही' से हीन हो जगत् यह अभी हो या कभी भी हो
भी' से भेंट सभी की हो। 'कर पर कर दो कुम्भ पर लिखित पंक्ति से ज्ञात होता है, कि
मूक पार्टी :: 173