________________
::
वात दूसरी थी अधूरी थी, मगर बात पूरी हुई, भीतर बराबर बारूद भरा हुआ था ही फिर क्या पूछना ! नाक में से बाहर की ओर संघन धूम-मिश्रित कोषको ला ... :: लपलपाती लाली बहने लगी अब वह नाक खतरनाक लगने लगी। इसी से लगता है, कि कोप की कोषिका नाक ही है 'नाक में दम कर रखा है।
सबका मना भी सन्देह नहीं इसमें। 'सतो गुण के सत्त्व की इति का यहाँ अवभासन हुआ राजसी - तामसी की अति का यहाँ अब भाषण हुआ'
"अधिक परिचय मत दो-" निर्भीक हो शिल्पी ने कहा रौद्र से
सोम की सौम्य मुद्रा में : "रुद्रता विकृति है विकार समिट-शीला होती है, भद्रता प्रकृति का है प्रकार अमिट-लीला होती है।
और सुनो ! यह सूक्ति सुनी नहीं क्या ? 'आमद कम खर्चा ज्यादा लक्षण है मिट जाने का कूबत कम गस्सा ज्यादा लक्षण है पिट जाने का'
मृक पाटो :: 135