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बहिर्मुखी अवश्य होता है।
और जिस पर करुणा की जा रही है, वह अधोमुखी"तो नहीं, ऊर्ध्वमुखी अवश्य होता है। तथापि,
ऊर्ध्वगामी होने का कोई नियम नहीं है। करुणा की दो स्थितियाँ होती हैं- . एक विषय लोलुपिनी दूसरी विषय-लोपिनी, दिशा-बोधिनी। पहली की चर्चा यहाँ नहीं है चर्चा-अचां दूसरी की है ! 'इस करुणा का स्वाद किन शब्दों में कहूँ ! .. . गर यकीन हो नमकीन आँसओं का स्वाद है वह !'
इसीलिए करुणा रस में शान्त-रस का अन्तर्भाव मानना
बड़ी भूल है। उछलती हुई उपयोग की परिणति वह
नहर की भाँति !
और
उजली-सी उपयोग की परिणति वह शान्त रस है नदी की भाँति : नहर खेत में जाती है
मूक पाटी : 155