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करुणा हेय नहीं है. करुणा की अपनी उपादेयता हैं अपनी सीमा फिर भी,
करुणा की सही स्थिति समझना है। करुणा करने वाला अहं का पोषक भले ही न बने, परन्तु स्वयं को गुरु-शिष्य अवश्य समझता है
और जिस पर करुणा की जा रही है वह स्वयं को शिशु-शिष्य अवश्य समझता है। दोनों का मन द्रवीभूत होता है शिष्य शरण लेकर गुरु शरण देकर कुछ अपूर्व अनुभव करते हैं पर इसे सही सख नहीं कह सकते हम। दुःख मिटने का
और
सुख मिलने का द्वार खुला अवश्य, फिर भी ये दोनों दुःख को मूल जाते हैं इस घड़ी में !
करुणा करने वाला अधोगामी तो नहीं होता, किन्तु अधोमुखी यानी
154:: मूक माटी