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यानी, शान्त रस का संवेदन वह सानन्द- एकान्त में ही ही और तब
एकाकी हो संवेदी वह" !
औसे रहित सरवर के अन्तरंग से
अपने रंगहीन या रंगीन अंग का संगम होना ही संगत है
शान्त - रस का यही संग है "यही अंग !
।
करुणा-रस जीवन का प्राण है घमघम समीर-धर्मी है वात्सल्य जीवन का त्राण है धवलिम नीर-धर्मी है किन्तु, यह
द्वैत - जगत् की बात हुई, शान्त रस जीवन का गान है मधुरिम क्षीर-धर्मी है।
करुणा रस उसे माना है, जो कठिनतम पाषाण को भी मोम बना देता है, वात्सल्य का वह बाना है जघनतम नादान को भी
सीम बना देता है।
किन्तु, यह लौकिक चमत्कार की बात हुई । शान्त रस का क्या बताना,
मूकमाटी 159