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शान्त-रस किसी बहाव में बहता नहीं कभी जमाना पलटने पर भी जमा रहता अपने स्थान पर । इससे यह भी ध्वनि निकलती है कि करुणा में वात्सल्य का मिश्रण सम्भव नहीं है
और वात्सल्य को हम पोल नहीं कह सकते न ही कपोल-कल्पित।
महासत्ता माँ के . .. . :: .::ो -गोन पर ...
पुलकित होता है यह वात्सल्य । करुणा-सम वात्सल्य भी द्वैत-भोजी तो होता है पर, ममता-समेत मौजी होता है, इसमें बाहरी आदान-प्रदान की प्रमुखता रहती है, भीतरी उपादान गौण होता है यही कारण है, इसमें
अद्वैत मौन होता है। सह-धर्मी सम आचार-विचारों पर ही इसका प्रयोग होता है इसकी अभिव्यक्ति मृदु मुस्कान के बिना सम्भव ही नहीं है। वात्सल्य रस के आस्वादन में
मूक माटी :: 157