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इस पर शिल्पी कहता हैं : "सना करुणा का स्वभाव नहीं है, बिना रोये करुणा का प्रयोग भी सम्भव नहीं। करुणा का होना और करुणा का करना इन दोनों में अन्तर है, तथापि
इतनी अति अच्छी नहीं लगती ! इस बात को मानता हूँ,
कि बिना खाद-डली खेत की अपेक्षा खाद-इली खेत की वह फसल लहलहाती है, परन्तु खाद में बीज बोने पर तो फसल जलती - देहदहाती है। हाँ, हाँ !! अनुपात से खाद-जल दे दिया खेत को बीज बिखेर दिये खेत में फिर भी बीज के अंकरित नहीं होते माटी का हाथ उन पर नहीं होने से। इतना ही नहीं, जिन बीजों पर माटी का भार-दयाव बहुत पड़ा हो वे भी अंकरित हो नहीं आ सकते भू-पर दम घुट जाता है उनका, भीतर ही भीतर।
मूक पाटी :: [53