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दूव उग आई है खूब ! वर्षा के कारण नहीं,
कर कंवल कथनी में करुणा रस घोल धर्मामृत-वर्षा करने वालों की भीड़ के कारण !
आज पथ दिखाने वालों को पथ दिख नहीं रहा है, माँ ! कारण विदित ही हैजिसे पथ दिखाया जा रहा है. वह स्वयं पथ पर चलना चाहता नहीं, औरों को चलाना चाहता है और
इन चालाक चालकों की संख्या अनगिन है। क्या करूँ ? जो कुछ घट रहा है लिखती हूँ"उसे उसका रस चखती हूँ फिर "बिलखती हूँ लिखती हूँ"! लेखनी जो रहीं।"
शिल्पी को स्तब्ध देख कर क्या करुणा की पालड़ी भी हलकी पड़ी ? इतनी बाल की खाल लो मत निकालोकहती-कहती करुणा रो पड़ी !
152 :: मूक पाटो