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जीवन-जगत् क्या? आशय समझो, आशा जीतो !" आशा ही को पाशा समझो!"
फिर, गम्भीर हो कुछ और कहती माँ
करुणा
"मेरे रोने से यदि
तुम्हारा मुख खिलता हो सुख मिलता हो तुम्हें लो ! मैं रो रही हूँ और रो सकती हूँ
और
मेरे होने से यदि
तुम्हारा दिल धुक् - धुक् करता हो हिलता हो, घबराहट से दुखता हो लो इस होने को खोना चाहूँगी चिरकाल तक सोना चाहूँगी, प्रार्थना करती हूँ प्रभु से, कि शीघ्रातिशीघ्र
150 सूक पाटी
मेरा होना मिट जाय
मेरा अस्तित्त्व अशेष रूप से शून्य में मिल जाय, बस !"
इस पर प्रभु फर्माति हैं कि
होने का मिटना सम्भव नहीं है, बेटा ! होना ही संघर्ष - समर का मीत हैं होना ही हर्ष का अमर गीत है।
मैं क्षमा चाहती हूँ तुमसे तुम्हारी कामना पूरी नहीं हो सकी हे भोक्ता - पुरुष !