________________
अगर सागर की ओर दृष्टि जाती हैं, गुरु-गारव-सा कल्प-काल वाला लगता है सागर; अगर लहर की ओर कि जाती है. . : . . . . . . . . . . .:. अत्प-काल बाला लगता है सागर।। एक ही वस्तु अनेक भंगों में भंगायित है अनेक रंगों में रंगायित है, तरंगायित !
मेरा संगी संगीत है
सप्त-भंगी रीत है। सुख के बिन्दु से ऊब गया था यह दुःख के सिन्धु में डूब गया था यह, कभी हार से सम्मान हुआ इसका, कभी हार से अपमान हुआ इसका। कहीं कुछ मिलने का लोभ मिला इसे, कहीं कुछ मिटने का क्षोभ मिला इसे, कहीं सगा मिला, कहीं दगा, भटकता रहा अभागा यह ! परन्तु आज, यह सब वैषम्य मिट-से गये हैं जब से"मिला"यह
146 :: मूक माटी