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किस लय में रीत जाते हैं। किसलय ये किसलिए किस लय में गीत गाते हैं...?"
अर्थ और परमार्थ की सूक्ष्मता कुछ और उजाले में लाई जाती है :
"अन्तिम भाग, बाल का भार भी जिस तुला में तुलता है वह कोयले की तुला नहीं साधारण-सी, सोने की तुला कहलाती है असाधारण ! सोना तो तुलता है सो"अतुलनीय नहीं है और तुले कमो लिमही
: . सो अतुलनीय रही है
और परमार्थ तुलता नहीं कभी
"अर्थ की तुला में अर्थ को तुला बनाना अर्थशास्त्र का अर्थ ही नहीं जानना है
और सभी अनर्थों के गर्त में युग को ढकेलना है।
अर्थशास्त्री को यह अर्थ क्या ज्ञात है ?" इस प्रसंग में 'स्वर' का स्मरण तक नहीं हो सका यूं दबे-मुख से निकले श्रृंगार के कुछ स्वर ! स्वर को भास्वर ईश्वर की उपमा मिली है। "ईश्वर ने भी स्वर को अपनाया
142 :: मूक मार्टी