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और खड़ा होता है पर को नकारता पर के मूल्य को अपने पदों दबाता है, मान को धक्का लगते ही भीर रस पिता
:: .. ... ....:: आपा भूल कर आग बबूता हो
पुराण-पुरुषों की परम्परा को ठुकराता है। मनु की नीति मानव को मिली थी क्या उसका विस्मरण हुआ या मरण ? पहला पद बही होमान का मनन जो, अगला पद सही हो मान का हनन हो, वह भी आमूल ! भूल न हो !"
वीर रस की अनुपयोगिता
और
उसके अनादर को देख कर माटी की महासत्ता के अधरों से फूटता-फिसलता हुआ हास्य-रस ने एक ठहाका मारा
शिल्पी की ओर : “वीर रस का अपना इतिहास है वीरों को उसका अहसास है, पर उसके उपहास का साहस मत करो तुम ! जो वीर नहीं हैं, अवीर हैं उन पर क्या, उनकी तस्वीर पर भी अबीर छिटकाया नहीं जाता ! हाँ, यह बात निराली है जाते समय अर्थी पर सुला कर भले ही छिटकाया जाता हो"
132 :: मूक माटी