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रौंदन-क्रिया और गति पकड़ती है माटी की गहराई में डूबते हैं शिल्पी के पद आजानु ! पुरुष की पुष्ट पिटरियों से लिपटती हुई प्रकृति, माटी सुगन्ध की प्यासी बनी
चन्दन तरु-लिपटी नागिन-सी" लिपटन की इस क्रिया से महासत्ता माटी की बाहओं से फूट रहा है वीर रस और पूछ रहा हैं शिल्पी से वह
कि
"क्यों स्मरण किया गया है इसे क्यों बाहर बुलाया गया है ? वीरों से स्तुत है यह वीर रस प्रस्तुत है, सदियों से वीर्य प्रदान किया हैं, 'युग को इसने !
लो ! पी लो प्याला भर-भर कर विजय की कामना पूर्ण हो तुम्हारी युग-वीर बनो ! महावीर बनो !
अक्षत-वीर्य बनो तुम !" अब शिल्पी का वीर्य वीलता है
'वीर रस से, कि "तुम नशे में बोल रहे हो ! इस विषय में हमारा विश्वास दृढ़तर बन चुका है,
कि
13 :: मुक माटी