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मौन को डराती हुई तुरन्त उसकी लाल आँखों पर शिल्पी की नीली आँखें
नीलिमा छिड़काती पल-भर ! शिल्पी ने तन के पक्ष को विपक्ष के रूप में देख, दूसरे पक्ष चेतन को सचेत किया, यह कह कर
"तन, मन, वचन ये बार-बार बहु बार मिले हैं,
और प्राप्त स्थिति पूरी कर तरलदार हो पिघले हैं, मोह-मूढ़तावश इन्हें हम गले लगायें परन्तु खेद है, पुरुष के साथ रह कर भी
पुरुष का साथ नहीं देते थे। प्रकृति ने पुरुष को आज तक कुछ भी नहीं दिया यदि दिया भी है तो रस-भाग नहीं, खोखा दिया है कोरा धोखा दिया है।
धोखा दिया : धोखा ही सही यूँ बार-बार कह, उसे भी पुरुष ने आँखों के जल से धो, खा दिया और आज भी
122 :: मूक मारी