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एक दीनता के भेष में है हार से लज्जित है, एक स्वाधीनता के देश में है सार से सज्जित हैं।
पुरुप की पिटाई प्रकृति ने की, ..... प्रकारान्नर से चेन ...... : ::
उसकी चपेट में आया। गुणी के ऊपर चोट करने पर। गुणों पर प्रभाव पड़ना ही है
"आघात मूल पर हो द्रुम सूख जाता है, दो मूल में सलिल'"तो. पूरण फूलता है।' सो ! शिल्पी का चेतन सचेत हो
स्व-पर कर्तव्य पर प्रकाश डालता-सा ! पुरुष का प्रकृति पर नहीं, चेतन पर चेतन का करण पर नहीं, अन्तःकरण-मन पर मन का तन पर नहीं, करण-गण पर
और करण-गण का पर पर नहीं, तन पर नियन्त्रण-शासन हो सदा। किन्तु तन शासित ही हो किसी का भी वह शासक-नियन्ता न हो, भाग्य होने से ।
भूक माटी :: 125