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पामर पुरुष मौका देख रहा है
कुछ अपूर्व पाने का प्रकृति से !" चेतन अब शिल्पी को अपना आशव बताता है :
"वेतन वाले वतन की ओर कम ध्यान दे पाते हैं
और चेतन वाले तन की ओर कव ध्यान दे पाते हैं ? इसीलिए तो राजा का मरण वह रण में हुआ करता है। प्रजा का रक्षण करते हुए, और महाराज का मरण वह धन में हुआ करता है ... . ध्वजा का रक्षण करते हुए जिस ध्वजा की छाँव में सारी धरती जीवित है सानन्द सुखमय श्वास स्वीकारती हुई !"
प्रकृति की आकृति में तुरन्त ही विकृति उदित हो आई सुन कर अपनी कद आलोचना और लोहिता क्षुभिता हो आई उसकी लोहमयी लोचनी ।
मूक माटी :: 123