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सदा-सदा के लिए क्रय-विक्रय से मुक्त अन्य अवस्था एती है मां.. और
मौन अपने में डूबता है ।
"अरे मौन ! सुन ले जरा कोरी आस्था की बात मत कर तू आस्था से बात कर ले जरा !" यूँ माटी की आस्था ने मौन की, जो सम्मुख खड़ा
नींव की सृष्टि वह पुण्यापुण्य से रची इस धर्म-दृष्टि में नहीं
ललकारा
है
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"मैं पाप से मौन हूँ तू आस्था से मौन, पाप के अतिरिक्त
सबसे रिक्त है तू ! आँखों की पकड़ में आशा आ सकती है परन्तु
आस्था का दर्शन आस्था से ही संभव है न आँखों से, न आशा से ।
अपितु
आस्था की धर्म-दृष्टि में ही उतर कर आ सकती है।"
वाहर आई आस्था माटी की वह गहरी मति में लौटती हुई मुड़ कर मौन को निहारती -सी घोड़ी लाल भी हो आई उसकी आँखें !
मूकमाटी 121