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स्थिर मन ही वह महामन्त्र होता है
और .... ...... अस्थिर बन ........:. : .
पापतन्त्र स्वच्छन्द होता है, एक सुख का सोपान है
एक दुःख का 'सो' पान है।" पुनः शूल जिज्ञासा व्यक्त करता है
“मोह क्या बला है
और
मोक्ष क्या कला हैं ? इनकी लक्षणा मिले, व्याख्या नहीं, लक्षणा से ही दक्षिणा मिलती है। लम्बी, गगन चूमती व्याख्या से मूल का मूल्य कम होता है सही मूल्यांकन गुम होता है।
मात्रानुकूल भले ही दुग्ध में जल मिला लो दुग्ध का माधुर्य कम होता है अवश्य !
जल का चातुर्य जम जाता है रसना पर ।" कंटक की जिज्ञासा समाधान पाती है शिल्पी के सम्बोधन से"अपने को छोड़ कर पर-पदार्थ से प्रभावित होना ही मोह का परिणाम है
और सबको छोड़ कर अपने आप में भावित होना ही
मूक माटी :: 109