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यहाँ से अब आगे
उस घटना का घटक वह किस रूप में उभर आएगा सामने
और उस रूप में आया हुआ उभार बह कब तक टिकेगा ? उसका परिणाम किमात्मक होगा ? यह सब भविष्य की गोद में हैं परन्तु, भवन-भूत-भविष्यत्-वेत्ता भगवद-बोध में बराबर भास्वत है।
माटी की वह मति मन्दमुखी हो मौन में समाती है, म्लान बना शिल्पी का मन भी नमन करता है मौन को, पदों को आज्ञा देने में पूर्णतः असमर्थ रहा
और मन के संकेत पाए बिना
भला, मुख भी क्या कहे ? इस पर रसना कह उटी कि 'अनुचित संकेत की अनुचरी रसना ही बह रसातल की राह रहीं हैं" बानी ! जो जीव अपनी जीभ जीतता है दुःख रीतता है उसी का सुख मय जीवन बीतता है चिरंजीव बनता वहीं
16 :: मूक माटी