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और उसी की बनती वचनावली स्व-पर-दुःख-निवारिणी संजीवनी बटी
चलना, अनुचित चलना ... ... . ...:.:.::. :: .. :: .. दुबां -
ये तीन बातें हैं। प्रसंग चल रहा है कुचलने का कुचली जाएगी माँ माटी'! फिर भला क्या कहूँ, क्यों कहूँ किस विधि कहूँ पदों को ?
और, गम्भीर होती है रसना। महकती इस दर्गन्ध को शिल्पी की नासा ने भी अपना भोजन बना लिया तभी "तो" माटी को कुचलने अनुमति प्रेषित नहीं करती वह इस घृणित कार्य की निन्दा ही करती है, और थोड़ी-सी अपने को मरोड़ती, फूलती-सी नासा पदों का पूरा समर्थन करती है
कि पदों का इस कार्य से विराम लेना न्यायोचित हैं और पदोचित भी !
बाल-भानु की भाँति विशाल-भाल की स्वर्णाभा को
मूक माटी :: 7