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“हित से जो युक्त - समन्वित होता है वह सहित माना हैं और सहित का भाव ही साहित्य बाना है,
अर्थ यह हुआ कि.: .....
जिसके अंवलांकन से " सुख का समुभव - सम्पादन हो सही साहित्य वही है अन्यथा, सुरभि से विरहित पुष्य-सम सुख का राहित्य है वह
सार-शून्य शब्द-झुण्ड" इसे, यूँ भी कहा जा सकता है
कि
शान्ति का श्वास लेता सार्थक जीवन ही स्रजक है शाश्वत साहित्य का। इस साहित्य को
आँखें भी पद सकती हैं कान भी सुन सकते हैं इसकी सेवा हाथ भी कर सकते हैं
यह साहित्य जीवन्त है ना।" इस बार'"तो"काँटा कान्ता-समागम से भी कई गुणा अधिक आनन्द अनुभव करता है फटा माथ होकर भी
मूक माटी :: 111