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सब कुछ तज कर, बन गये नग्न, अपने में मग्न बन गये उसी ओर''. उन्हीं की अनुक्रमणिका-निर्देशिका भारतीय संस्कृति है
सुख-शान्ति की प्रवेशिका है यह। .. . छूत की अर्धा होती है .......... ... ... ...... :::
इसलिए फूलों की चर्चा होती हैं। फूल अर्चना की सामग्री अवश्य हैं ईश के चरणों में समर्पित होते वह
फूलों को छूते नहीं भगवान शूल-धारी होकर भी। काम को जलाया है प्रभु ने तभी तो" शरण-हीन हुए फूल शरण की आस ले प्रभु-चरणों में आते वह;
और सुनो ! प्रभु का पावन सम्पर्क पा कर फूलों से विलोम परिणमन शूलों में हुआ है कहाँ से यहाँ तक
और यहाँ से कहाँ तक? कब से अब तक और अब से कब तक?
मृक माटी :: 103