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"सल्लेखना, यानी काय और कषाय को कृश करना होता है, बेटा! काया को कृश करने से कषाय का दम घुटता है,
"घुटना ही चाहिए। और, काया को मिटाना नहीं, मिटती-काया में मिलती-माया में म्लान-मुखी और मुदित-मुखी नहीं होना ही ... सही सल्लेखना है, अन्यथा आतम का धन लुटता है, बेटा!
वातानुकूलता हो या न हो बातानुकुलता हो या न हो सुख या दुःख के लाभ में भी भला छपा हुआ रहता है, देखने से दिखता है समता की आँखों से, लाभ शब्द ही स्वयं विलोम रूप से कह रहा है
लाभ भ"ला अन्त-अन्त में यही कहना है बेटा!
कि अपने जीवन-काल में छली मछलियों-सी छली नहीं बनना विषयों की लहरों में भूल कर भी मत चत्ती बनना।
मूक मादी :: 87