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उस की कृपा कब होती है? वसुधा पर वरीयसी अनुकम्पा की बरसात है।
गीत-काल में कब थे दीक्षित भी शिक्षित कब थे प्रशिक्षित भी, फिर भी अभ्यासी-सम
नर्तन करते सब के दाँत हैं। दिन में सिकुड़न हो आई है प्रभाकर की प्रखरता भी इरती बिखरती-सी लगती है
और
ऊपर हो कर भी नभ में ... ... .. ... ... .. .. पाकर लनामाश है! . : .. जहाँ कहीं भी देखा महि में महिमा हिम की महकी, और आज! धनी अलिगुण-हनी शनि की खनी-सी भय-मद अघ की जनी
दुगुणी हो आई सत है। आखिर अखर रहा है यह शिशिर सबको पर! पर क्या? एक विशेष बात है, कि
शिल्पी की बह
सहज रूप से कटती-सी रात है ! एक पतली-सी सूती-चादर भर
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मूक माटी ::