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बदले का भाव वह अनल है
जलाता है तन को भी, चेतन को भी भवों-भवों तक!
. बहले का भाव बह राह ......... : . :. : . : ......
जिसके सुदीर्घ विकराल गाल में छोटा-सा कवल बन चेतनरूप भास्वत भान भी
अपने अस्तित्व को खो देता है और सुनो: बाली से बदला लेना ठान लिया था दशानन ने फिर क्या मिला फल? तन का बल मथित हुआ मन का बल व्यथित हुआ
और यश का बल पतित हुआ यही हुआ ना ! त्राहि मां! त्राहि मां:! त्राहि मां!!! यूँ चिल्लाता हुआ राक्षस की ध्वनि में रो पड़ा तभी उसका नाम रावण पड़ा।"
"हाँ! हाँ! बस! बस! । अधिक उपदेश से विराम हो, माँ! मात्र दृष्टि में मत नाम हो, माँ: गुणवत्ता काम की ओर भी कुछ आयाम हो अब!
98 :: मृक माटी