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संयत अध्ययन
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४. कप्प-द्वारप. (१) सामाइयसंजए णं भंते ! किं ठियकप्पे होज्जा,
अठियकप्पे होज्जा ? उ. गोयमा ! ठियकप्पे वा होज्जा, अठियकप्पे वा होज्जा। प. (२) छेदोवट्ठावणियसंजए णं भंते ! किं ठियकप्पे
होज्जा, अठियकप्पे होज्जा ? उ. गोयमा ! ठियकप्पे होज्जा, नो अठियकप्पे होज्जा।
(३) एवं परिहारविसुद्धियसंजए वि, (४-५) सेसा जहा सामाइयसंजए।
प. (१) सामाइयसंजए णं भंते ! किं जिणकप्पे होज्जा,
थेरकप्पे होज्जा, कप्पातीते होज्जा ? उ. गोयमा ! जिणकप्पे वा होज्जा, थेरकप्पे वा होज्जा,
कप्पातीते वा होज्जा। प. (२) छेदोवट्ठावणियसंजए णं भंते ! किं जिणकप्पे
होज्जा,थेरकप्पे होज्जा, कप्पातीते होज्जा ? उ. गोयमा ! जिणकप्पे वा होज्जा, थेरकप्पे वा होज्जा, नो
कप्पातीते होज्जा।
(३) एवं परिहारविसुद्धियसंजए वि। प. (४) सुहमसंपरायसंजए णं भंते ! किं जिणकप्पे होज्जा,
थेरकप्पे होज्जा, कप्पातीते होज्जा? उ. गोयमा ! नो जिणकप्पे होज्जा, नो थेरकप्पे होज्जा,
कप्पातीते होज्जा।
(५) एवं अहक्खायसंजए वि। ५. चरित्त-दारंप. (१) सामाइयसंजए णं भंते ! किं पुलाए होज्जा जाव
सिणाए होज्जा? उ. गोयमा ! पुलाए वा होज्जा जाव कसायकुसीले वा
होज्जा, नो नियंठे होज्जा, नो सिणाए होज्जा।
(२) एवं छेदोवट्ठावणिए वि। प. (३) परिहारविसुद्धियसंजए णं भंते ! किं पुलाए होज्जा
जाव सिणाए होज्जा? उ. गोयमा ! नो पुलाए होज्जा,
नो बउसे होज्जा, नो पडिसेवणाकुसीले होज्जा, कसायकुसीले होज्जा, नो णियंठे होज्जा, नो सिणाए होज्जा।
(४) एवं सुहुमसंपराए वि। प. (५) अहक्खायसंजए णं भंते ! किं पुलाए होज्जा जाव
सिणाए होज्जा? उ. गोयमा ! नो पुलाए होज्जा जाव नो कसायकुसीले होज्जा,
णियंठे वा होज्जा, सिणाए वा होज्जा।
४. कल्प-द्वारप्र. (१) भन्ते ! सामायिक संयत क्या स्थित कल्पी होता है या
अस्थित कल्पी होता है? उ. गौतम ! स्थित कल्पी भी होता है, अस्थित कल्पी भी होता है। प्र. (२) भन्ते ! छेदोपस्थापनीय संयत क्या स्थित कल्पी होता है
या अस्थित कल्पी होता है ? उ. गौतम ! स्थित कल्पी होता है, अस्थित कल्पी नहीं होता है।
(३) इसी प्रकार परिहारविशुद्धिक संयत भी जानना चाहिए। (४-५) शेष दोनों संयत सामायिक संयत के समान जानना
चाहिए। प्र. (१) भन्ते ! सामायिक संयत क्या जिन कल्पी होता है, स्थविर
कल्पी होता है या कल्पातीत होता है? उ. गौतम ! जिन कल्पी भी होता है, स्थविर कल्पी भी होता है,
कल्पातीत भी होता है। प्र. (२) भन्ते ! छेदोपस्थापनीय संयत क्या जिन कल्पी होता है,
स्थविर कल्पी होता है या कल्पातीत होता है? उ. गौतम ! जिन कल्पी भी होता है, स्थविर कल्पी भी होता है,
किन्तु कल्पातीत नहीं होता है।
(३) इसी प्रकार परिहारविशुद्धिक संयत भी जानना चाहिए। प्र. (४) भन्ते ! सूक्ष्मसंपराय संयत क्या जिन कल्पी होता है,
स्थविर कल्पी होता है या कल्पातीत होता है? उ. गौतम ! जिन कल्पी नहीं होता है, स्थविर कल्पी भी नहीं होता
है किन्तु कल्पातीत होता है।
(५) इसी प्रकार यथाख्यात संयत भी जानना चाहिए। ५. चारित्र-द्वारप्र. (१) भन्ते ! सामायिक संयत क्या पुलाक होता है यावत्
स्नातक होता है? उ. गौतम ! पुलाक भी होता है यावत् कषायकुशील भी होता है।
किन्तु निर्ग्रन्थ नहीं होता है और स्नातक भी नहीं होता है।
(२) इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय संयत भी जानना चाहिए। प्र. (३) भन्ते ! परिहारविशुद्धिक संयत क्या पुलाक होता है • यावत् स्नातक होता है? उ. गौतम ! न पुलाक होता है।
न बकुश होता है। न प्रतिसेवना कुशील होता है। कषाय कुशील होता है। निर्ग्रन्थ भी नहीं होता है। स्नातक भी नहीं होता है।
(४) इसी प्रकार सूक्ष्म संपराय संयत भी जानना चाहिए। प्र. (५) भन्ते ! यथाख्यात संयत क्या पुलाक होता है यावत्
स्नातक होता है? उ. गौतम ! न पुलाक होता है यावत् न कषायकुशील होता है।
किन्तु निर्ग्रन्थ होता है या स्नातक होता है।
स्नात