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आश्रव अध्ययन भद्दगे वा गुण-कित्ति-नेह-परलोग-निप्पिवासा। एवं ते अलियवयणदच्छा परदोसुप्पायणपसत्ता वेāति अक्खाइयबीएणं अप्पाणं कम्मबंधणेण।" मुहरी असमिक्खियप्पलावी। -पण्ह. आ.२, सु.५१
२५. परत्थावहारगा मुसावाई
“निक्खेवे अवहरंति परस्स अत्थंमि गढियगिद्धा।"
"अभिजुंजंति य परं असंतएहिं।" "लुद्धा य करेंति कूडसक्खित्तणं।" "असच्चा अत्थालियं च कन्नालियं च भोमालियं च तह गवालियं च गरुयं भणंति अहरगइगमणं।"
अन्नं पि य जाइ-रूव-कुल-सीलपच्चयं मायाणिउणं चवलपिसुणं परमट्ठभेदगमसंतगं विदेसमणत्थकारक पापकम्ममूलं दुद्दिट्ठ दुस्सुयं अमुणियं णिल्लज्जं लोयगरहणिज्ज, वह-बंध-परिकिलेस-बहुल-जरा-मरणदुक्ख-सोय-निम्मं असुद्धपरिणामसंकिलिट्ठ भणंति।
१००३ भद्र पुरुष के परोपकार, क्षमा आदि गुणों को तथा कीर्ति स्नेह एवं परभव की लेशमात्र परवाह न करने वाले वे असत्यवादी, असत्य भाषण करने में कुशल दूसरों के दोषों को (मन से घड़कर) बताने में निरत रहते हैं। इस प्रकार वे विचार किए बिना बोलने वाले, अक्षय दुःख के कारणभूत अत्यन्त दृढ़ कर्मबन्धनों से अपनी आत्मा
को वेष्टित (बद्ध) करते हैं। २५. परधनापहारक मृषावादी
"पराये धन में अत्यन्त आसक्त वे (मृषावादी लोभी) निक्षेप धरोहर को हड़प जाते हैं।" "दूसरों को अविद्यमान दोषों से दूषित करते हैं।" "धन के लोभी झूठी साक्षी देते हैं।" वे असत्यभाषी धन के लिए, कन्या के लिए, भूमि के लिए तथा गाय-बैल आदि पशुओं के निमित्त अधोगति मैं ले जाने वाला असत्यभाषण करते हैं।" इसके अतिरिक्त मिथ्या षड्यन्त्र रचने में कुशल, परकीय असद्गुणों के प्रकाशक और सद्गुणों के विनाशक, पुण्य-पाप के स्वरूप से अनभिज्ञ, असत्याचरणपरायण वे मृषावादी लोग जाति कुल रूप एवं शील के विषय में अन्यान्य प्रकार से भी असत्य बोलते हैं। वह असत्य माया के कारण गुणहीन है, चपलता से युक्त है, चुगलखोरी-पैशुन्य से परिपूर्ण है, परमार्थ को नष्ट करने वाला है, असत्य अर्थवाला अथवा सत्व से हीन, द्वेषमय, अप्रिय, अनर्थकारी, पापकर्मों का मूल एवं मिथ्यादर्शन से युक्त है। वह कर्णकटु सम्यग्ज्ञानशून्य, लज्जाहीन, लोकगर्हित, वध-बन्धन आदि रूप क्लेशों से परिपूर्ण, जरा, मृत्यु दुःख और शोक का कारण है, अशुद्ध परिणामों के कारण संक्लेश से युक्त है। जो लोग मिथ्या अभिप्राय में निरत है, स्वयं में अविद्यमान गुणों की उदीरणा करने वाले और दूसरों में विद्यमान गुणों के नाशक हैं। वे हिंसा करके प्राणियों का उपघात करते हैं, असत्य भाषण करने में प्रवृत्त हैं ऐसे लोग सावध-पापमय, अकुशल, अहितकर सत्पुरुषों द्वारा गर्हित और अधर्मजनक वचनों का प्रयोग करते हैं। ऐसे मनुष्य पुण्य और पाप के स्वरूप से अनभिज्ञ होते हैं। वे पुनः अधिकरणों पाप के साधनों को बनाने, जुटाने, जोड़ने आदि की क्रिया में प्रवृत्ति करने वाले हैं, वे अपना और दूसरों का
अनेक प्रकार से अनर्थ और विनाश करते हैं। २६. पाप का परामर्श देने वाले मृषावादी
इसी प्रकार 'स्व-पर का अहित करने वाले मृषावादी जन घातकों को भैंसा और शूकर बतलाते हैं।' 'वागुरिकों-व्याधों को शशक-खरगोश, पसय-मृगविशेष या मृगशिशु और रोहित बतलाते हैं।' "शाकुनिकों-चिड़ीमारों को तीतर, बतक और लावक तथा कपिंजल और कपोत-कबूतर बतलाते हैं।" "मच्छीमारों को-झष-मछलियाँ, मगर और कछुआ बतलाते हैं।" "धीवरों को शंख द्वीन्द्रिय जीव, अंक-जल-जन्तु विशेष और खुल्लक-कौड़ी के जीव बतलाते हैं।" "सपेरों को अजगर, गोणस, मण्डली एवं दर्वीकर जाति के सो को तथा मुकुली बिना फन के सर्प बतलाते हैं।
अलियाहिसंधिसण्णिविट्ठा असंतगुणुदीरगा य संतगुणनासगा य हिंसा-भूतोवघाइयं-अलियसंपउत्ता वयणं सावज्जमकुसलं साहुगर-हणिज्जं अधम्मजणणं भणंति अणभिगयपुण्णपावा।
पुणो वि अहिकरणकिरियापवत्तका बहुविहं अणत्थं अवमदं अप्पणो परस्स य करेंति। -पण्ह. आ.२, सु.५२-५३
२६. पावपरामरिसग मुसावाई
"एमेव जपमाणा-महिस-सूकरे य साहिति घायगाणं।"
"ससय-पसय-रोहिए य साहिति वागुराणं।"
"तित्तिर-वट्टग-लावके य कविंजल-कवोयगे य साहिति साउणीणं।" "झस-मगर-कच्छभे य साहिति मच्छियाणं।" "संखंक खुल्लए य साहिति मगराणं।"
"अयगर-गोणस-मंडलि-दव्वीकरे वालवीणं।"
मउली य साहिति