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तिर्यञ्च गति अध्ययन
प. ते णं भंते! जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधगा, अबंधगा ?
उ. गोयमा ! तहेव जहा उप्पलुद्देसे।
एवं वेदे वि, उदए वि, उदीरणाए वि ।
प. ते णं भंते ! जीवा किं कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काउलेस्सा ?
उ. गोयमा ! छव्वीस भंगा भाणियच्या
दिट्ठी जाव इंदिया जहा उप्पलुद्देसे ।
प. से णं भंते! साली-वीही गोधूम - जव जवजवगमूलगजीवे कालओ केवचिरं होड ?
उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं,
उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं ।
प से णं भंते! साली-बीही गोधूम जव जवजवगमूलगजीवे, पुढवीजीचे, पुनरवि साली बीही जब जवजवगमूलगजीवे केवइयं काल सेवेज्जा, केवइयं कालं गहराई करिज्जा ?
उ. गोयमा ! एवं जहा उप्पलुदेसे।
एए अभिलावेण जाय मणुस्सजीये।
आहारो जहा उप्पलुसे।
ठिई जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वासपुहत्तं ।
समुग्घायसमोहया य उव्वट्टणा य जहा उप्पलुद्देसे।
प. अह भंते! सव्वपाणा जाव सव्वसत्ता साली-वीही गोधूम जय जवजवगमूलग जीवत्ताए उपवन्त्रपुण्या ?
उता, गोयमा ! असई अदुवा अनंतखुत्तो
-विया. स. २१, व. १, उ. ९, सु.२-१६ ३८. साली-बीडीआईणं कंद-खंध तथा साल पवाल पत्त-पुष्क- फल बीयजीवाणं उदयाचाइ पलवर्ण
प. अह भंते ! साली-वीही गोधूम जव जवजवाणं, एएसि णं जे जीवा कंदत्ताए वक्कमति ते णं भंते! जीवा कओहिंतो उववज्जति ?
उ. गोयमा ! एवं कंदाहिगारेण सो चेव मूलुद्देसो अपरिसेसो जाव असई अदुवा अनंतखुत्तो
-विया. स. २१, व. १, उ. २, सु. १
एवं खंधे वि उद्देसओ नेयव्वो ।
- विया. स. २१, व. १, उ. ३, सु. १ एवं तयाए वि उद्देसो । - विया स. २१, व. १, उ. ४, सु. १
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प्र. भन्ते ! वे जीव ज्ञानावरणीय कर्म के बंधक हैं या अबंधक हैं ?
उ. गौतम ! जिस प्रकार उत्पल उद्देशक में कहा उसी प्रकार यहाँ जानना चाहिए।
इसी प्रकार वेदन, उदय और उदीरणा के लिए भी जानना चाहिए।
प्र. भन्ते ! वे जीव कृष्णलेश्यी, नीललेश्यी या कापोतलेश्यी होते हैं?
उ. गौतम (यहाँ इन तीन लेश्याओं सम्बन्धी) छब्बीस भंग कहने चाहिए।
दृष्टि से इन्द्रिय पर्यन्त का समग्र कथन उत्पल उद्देशक के अनुसार जानना चाहिए।
प्र. भन्ते ! शाली, व्रीहि, गेहूँ, जौ और जवजव के मूल का जीव कितने काल तक रहता है ?
उ. गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट असंख्यात काल तक रहता है।
प्र. भन्ते ! शाली, व्रीहि, गेहूँ, जौ, जवजव के मूल का जीव पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न हो और पुनः शाली, व्रीहि, जौ, जवजव के मूल रूप में उत्पन्न हो तो वह कितने काल तक रहता है और कितने काल तक गति आगति करता है।
उ. गौतम ! उप्पल उद्देशक के अनुसार यहाँ समग्र कथन करना चाहिए।
इस अभिलाप से मनुष्य जीव पर्यन्त कथन करना चाहिए। आहार सम्बन्धी कथन उत्पल उद्देशक के समान है।
(इन जीवों की स्थिति उपन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट वर्ष पृथक्त्व की है।
समुद्घात समवहत और उद्वर्तना उत्पल उद्देशक के अनुसार है।
प्र. भन्ते ! क्या सर्व प्राण यावत् सर्व सत्व शाली, व्रीहि, गेहूँ, जौ और जवजव के मूल जीव के रूप में इससे पूर्व उत्पन्न हो चुके है?
उ. हाँ, गौतम ! अनेक बार या अनन्त बार उत्पन्न हो चुके हैं।
३८. शाली - व्रीहि आदि के कंद स्कंध - त्वचा शाखा-प्रवाल- पत्रपुष्प फल बीज के जीवों के उत्पातादि का प्ररूपण
प्र. भन्ते ! शाली, व्रीहि, गेहूँ, जौ और जवजव इन सबके कन्द रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, तो भन्ते ! वे जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ?
उ. गौतम ! कन्द का कथन करते हुए समग्र मूल उद्देशक अनेक बार या अनन्त बार इससे पूर्व में उत्पन्न हो चुके हैं पर्यन्त कहना चाहिए।
इसी प्रकार स्कंध का उद्देशक भी पूर्ववत् कहना चाहिए।
त्वचा का उद्देशक भी इसी प्रकार कहना चाहिए।