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देव गति अध्ययन
३९. देवेहिं सदाई सबणाई ठाण परूवणंदोहि ठाणेहिं देवे सद्दाई सुणेइ, तं जहा १. देसेण वि देवे सद्दाई सुणेइ,
२. सव्वेण वि देवे सद्दाई सुणेइ,
एवं - १. रूबाई पासइ,
२. गंधाई अग्घाइ,
३. रसाई आसाएइ,
४. फासाई पडिसंवेदेइ,
५. ओभासइ.
७. विकुव्व
९. भासं भासइ,
११. परिणामेइ, १३. निज्जरेइ,
४०. लोगंतिय देवाणं मणुस्सलोगे आगमण कारण परूवणं
६. पभासइ,
८. परियारेड,
१०. आहारेइ,
१२. वेदेइ,
-ठाणं. अ. २, उ. २, सु. ७१/१२
चाहिं ठाणेोहिं लोगतिया देवा माणुस लोग हव्यमागच्छेज्जा, तं जहा
१. अरहंतेहिं जायमाणेहिं,
२. अरहंतेहिं पव्ययमाणेहिं,
३. अरहंताणं णाणुष्यायमहिमासु,
४. अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु' [91
-ठाणं. अ. ४, उ. ३, सु. ३२४
४१. अडुणोववण्णगदेवरस माणुसलोगे अणागमण-आगमण कारण
परूयणं
(क) चउहिं ठाणेहिं अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु इच्छेज्ज माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए, तं जहा
१. अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे से णं माणुस्सए कामभोगे नो आढाइ,
नो परियाणा नो अट्ठे बंधइ,
नो नियाणं पगरेड,
नो ठिइपगप्पं पगरेइ,
२. अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिव्येसु कामभोगेसु मुच्छिए गिद्धे, गढिए अज्झोवण्णे तस्स णं माणुस्सए पेमे वोच्छिन्ने दिव्वे संकंते भवइ ।
३. अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिए, गिद्धे, गढिए अज्झोववण्णे तस्स णं एवं भवइ 'इहिं गच्छं मुहुत्तेणं गच्छे" तेणं कालेणं अप्पाउया मणुस्सा कालधम्मुणा संजुत्ता भवंति ।
४. अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिव्वेसु, कामभोगेसु,
१. ठाणं. अ. ३, उ. १, सु. १४२
३९. देवों द्वारा शब्दादि के श्रवणादि के स्थानों का प्ररूपणदो स्थानों से देव शब्द सुनता है, यथा
१. शरीर के एक भाग से भी देव शब्द सुनता है,
२. सम्पूर्ण शरीर से भी देव शब्द सुनता है।
इसी प्रकार - १. दो स्थानों से रूप को देखता है, २. गंधों को सूंघता है,
३. रसों का आस्वादन करता है,
४. स्पर्शो का प्रतिसंवेदन करता है,
५. अवभाषित होता है,
७. विक्रिया करता है, ९. भाषा बोलता है, ११. परिणमन करता है, १३. निर्जरा करता है।
४०. लोकान्तिक देवों के मनुष्य लोक में आगमन के कारणों का
२.
१४१३
६.
प्रभासित होता है,
८. मैथुन सेवन करता है, १०.
आहार करता है,
१२.
अनुभव करता है,
प्ररूपण
चार कारणों से तत्क्षण लोकांतिक देव मनुष्य लोक में आते हैं, यथा
१. अर्हन्तों के जन्म होने पर,
२. अर्हन्तों के प्रव्रजित होने के अवसर पर,
३. अर्हन्तों के केवलज्ञानोत्पत्ति महोत्सव पर.
४. अर्हन्तों के परिनिर्वाण महोत्सव पर ।
४१. तत्काल उत्पन्न देव के मनुष्य लोक में अनागमन-आगमन के कारणों का प्ररूपण
(क) चार कारणों से देवलोक में तत्काल उत्पन्न देव शीघ्र ही मनुष्य लोक में आना चाहता है किन्तु आ नहीं सकता, यथा
१. देवलोक में तत्काल उत्पन्न देव दिव्य काम भोगों में, मूर्च्छित, गृद्ध, बद्ध तथा आसक्त होकर मानवीय काम भोगों कोन आदर देता है,
ठाणं. अ. ३, उ. ३, सु. १८३/१
न अच्छा जानता है, न उनसे प्रयोजन रखता है,
न निदान (उन्हें पाने का संकल्प) करता है,
न स्थिति प्रकल्प (उनके बीच रहने की इच्छा) करता है। २. देवलोक में तत्काल उत्पन्न, दिव्यकामभोगों में
मूर्च्छित, गृद्ध, बद्ध तथा आसक्त देव का मनुष्य संबंधी प्रेम व्युच्छिन्न हो जाता है तथा उनमें दिव्य प्रेम संक्रान्त हो जाता है। ३. देवलोक में तत्काल उत्पन्न, दिव्य कामभोगों में मूर्च्छित, गृद्ध, बद्ध तथा आसक्त देव सोचता है कि मैं अभी (मनुष्य लोक में) जाऊँ, मुहूर्त भर में जाऊँ इतने से समय में अल्पायुष्क मनुष्य काल धर्म को प्राप्त हो जाते हैं। ४. देवलोक में तत्काल उत्पन्न दिव्य कामभोगों में