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द्रव्यानुयोग-(२) मूर्च्छित, गृद्ध, बद्ध तथा आसक्त देव को इस मनुष्य लोक की गन्ध प्रतिकूल और प्रतिलोम लगने लग जाती है। मनुष्य लोक की गन्ध चार पांच सौ योजन ऊँचाई पर्यन्त आती रहती है। तत्काल उत्पन्न देव देवलोक से मनुष्य लोक में आना चाहता है किन्तु उक्त चार कारणों से आ नहीं पाता है।
(ख) चार कारणों से देवलोक में तत्काल उत्पन्न देव शीघ्र ही
मनुष्यलोक में आना चाहता है और आ भी सकता है, यथा
१. देवलोकों में तत्काल उत्पन्न दिव्य कामभोगों में अमूर्छित, अगृद्ध, अबद्ध तथा अनासक्त देव यह विचार करता है कि मेरे मनुष्य भव के जो आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर, गणी, गणधर तथा गणावच्छेदक हैं जिनके प्रभाव से मुझे यह और इस प्रकार की दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवधुति लब्ध प्राप्त और अभिसमन्वागत हुई है अतः मैं जाऊँ और उन भगवन्तों की वंदना करूँ यावत पर्यपासना करूं।
मुच्छिए, गिद्धे, गढिए, अज्झोववण्णे तस्स णं माणुस्सए गंधे पडिकूले पडिलोमे या वि भवइ, उड्ढपि य णं माणुस्सए गंधे जाव चत्तारि पंच जोयणसयाइं हव्वमागच्छइ। इच्चेएहिं चउहि ठाणेहिं अहुणोववण्णे देवे देवलोएसु इच्छेज्ज माणुसं लोग हव्वमागच्छित्तए, नो चेवणं संचाएइ
हव्वमागच्छित्तए। (ख) चउहिं ठाणेहिं अहुणोववण्णे देवे देवलोएसु इच्छेज्जा
माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए संचाएइ हव्वमागच्छित्तए, तंजहा१. अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिव्येसु कामभोगेसु अमुच्छिए अगिद्धे अगढिए अणज्झोववण्णे, तस्स णं एवं भवइ, अत्थि खलु मम माणुस्सए भवे आयरिएइ वा, उवज्झाएइ वा, पवत्तेइ वा,थेरेइ वा, गणीइ वा, गणधरेइ वा, गणवच्छेएइ वा जेसिं पभावेणं मए इमा एयारूवा दिव्वा देविड्ढी, दिव्वा देवजुइ, लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया तं गच्छामि णं ते भगवंते वंदामि जाव पज्जुवासामि। २. अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु अमुच्छिए, अगिद्धे, अगढिए, अणज्झोववण्णे तस्स णं एवं भवइ-'एस णं माणुस्सए भवे नाणीइ वा, तवस्सीइ वा, अइदुक्कर दुक्कर कारए" तं गच्छामि णं ते भगवं ते वंदामि जाव पज्जुवासामि। ३. अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु कामभोगेसु . अमुच्छिए, अगिद्धे, अगढिए, अणज्झोववण्णे तस्स णं एवं भवइ-“अस्थि णं मम माणुस्सए भवे मायाइ वा जाव सुण्हाइवा,तं गच्छामि णं तेसिमंतियं पाउब्भवामि, पासंतु ता मे इममेयारूवं दिव्वं देवढिं दिव्वं देवजुई लद्धे पत्तं अभिसमण्णागयं ४. अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु कामभोगेसु अमुच्छिए, अगिद्धे, अगढिए अणज्झोववण्णे तस्स णं एवं भवइ “अस्थि णं मम माणुस्सए भवे मित्तेइ वा, सहाइ वा, सुहीइ वा, सहाएइ वा, संगएइ वा तेसिं च णं अम्हे अण्णमण्णस्स संगारं पडिसुए भवइ" जो मे पुव्विं चयइ से संबोहेयव्वे। इच्चेएहिं चउहिं ठाणेहिं अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु माणुसं लोग हव्वमागच्छित्तए संचाएइ हव्वमागच्छित्तए।
-ठाणं. अ.४, उ.३,सु.३२३ ४२. देविंदाईणं मणुस्सलोगे आगमण कारण परूवणं
२. देवलोकों में तत्काल उत्पन्न दिव्य कामभोगों में अमूर्छित, अगृद्ध, अबद्ध तथा अनासक्त देव इस प्रकार सोचता है कि वे मेरे मनुष्य भव के ज्ञानी, अति दुष्कर तपस्या करने वाले तपस्वी हैं अतः मैं जाऊँ और उन भगवन्तों की वंदना करूँ यावत् पर्युपासना करूँ। ३. देवलोक में तत्काल उत्पन्न दिव्य कामभोगों में अमूर्च्छित, अगृद्ध, अबद्ध तथा अनासक्त देव इस प्रकार सोचता है कि वे मेरे मनुष्य भव की माता यावत् पुत्रवधू है, अतः मैं जाऊं और उनके सामने प्रकट होऊँ, जिससे वे लब्ध प्राप्त और अधिगत हुई मेरी यह और इस प्रकार की दिव्य देवर्द्धि दिव्य देवधुति को देखें। ४. देवलोक में तत्काल उत्पन्न दिव्य कामभोगों में अमूर्छित, अगृद्ध, अबद्ध तथा अनासक्त देव इस प्रकार सोचता है कि-'मेरे मनुष्य भव के जो मित्र, बाल सखा, हितैषी, सहचर तथा परिचित हैं और जिनसे मैंने परस्पर संकेतात्मक प्रतिज्ञा की थी कि जो पहले च्युत होगा वह दूसरे को संबोधित करेगा। इस प्रकार इन चार कारणों से देवलोक में तत्काल उत्पन्न देव शीघ्र ही मनुष्य लोक में आना चाहता है और आता है।
चउहिं ठाणेहिं देविंदा माणुसं लोगे हव्वमागच्छंति, तं जहा१. अरहंतेहिं जायमाणेहि, २. अरहंतेहिं पव्वयमाणेहिं,
४२. देवेन्द्रों आदि के मनुष्य लोक में आगमन के कारणों का
प्ररूपणचार कारणों से देवेन्द्र तत्काल मनुष्यलोक में आते हैं, यथा१. अर्हन्तों का जन्म होने पर, २. अर्हन्तों के प्रव्रजित होने के अवसर पर,
१.
ठाणं.अ.३, उ.३,सु. १८३/२