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वुक्कति अध्ययन
उ. गोयमा !१. नो अद्धेणं अद्ध उव्वट्टइ,
२. नो अद्धेणं सव्वं उव्वट्टइ,
३. नो सव्वेणं अद्धं उव्वट्टइ, ४. सव्वेणं सव्वं उव्वट्टइ। दं.२-२४. एवं जाव वेमाणिए।
एवं उव्वट्टे वि जाव वेमाणिए। -विया. स. १, उ.७, सु. ६ २७. चउवीसदंडएसु अणंतरनिग्गयत्ताइ परूवणंप. दं.१.नेरइयाणं भंते ! किं अणंतरनिग्गया परंपरनिग्गया
अणंतरपरंपर अनिग्गया? उ. गोयमा ! नेरइया णं अणंतरनिग्गया वि, परंपरनिग्गया
वि,अणंतरपरंपर अनिग्गया वि। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ___ "नेरइयाणं अणंतरनिग्गया वि, परंपर निग्गया वि,
अणंतरपरंपर अनिग्गया वि? उ. गोयमा ! जे णं नेरइया पढमसमयनिग्गया ते णं नेरइया
अणंतरनिग्गया, जे णं नेरइया अपढमसमयनिग्गया ते ण नेरइया परंपर निग्गया, जे णं नेरइया विग्गहगइसमावण्णगा ते णं नेरइया अणंतरपरंपर अनिग्गया। से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"नेरइयाणं अणंतरनिग्गया वि, परंपरनिग्गया वि, अणंतरपरंपरअनिग्गया वि। दं.२-२४.एवं जाव वेमाणिया।
-विया. स. १४, उ.१.सु.१४-१५ २८. चउवीसदंडगाणं जीवाणं उव्वट्टणाणंतर उप्पाय परूवणं-
- १४६७ ) उ. गौतम ! १. अर्धभाग से अर्धभाग को आश्रित करके नहीं
निकलता है। २. अर्धभाग से सर्व भाग को आश्रित करके नहीं
निकलता है। ३. सर्वभाग से अर्धभाग को आश्रित करके नहीं निकलता है। ४. सर्व भाग से सर्व भाग को आश्रित करके निकलता है। दं.२-२४. इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए।
इसी प्रकार उद्वृत्त के लिए भी वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए। २७. चौबीस दंडकों में अनन्तर निर्गतादि का प्ररूपण
प्र. दं. १. भंते ! क्या नारक जीव अनन्तर-निर्गत है, परम्पर
निर्गत है या अनन्तरपरम्पर अनिर्गत है? उ. गौतम ! नैरयिक अनन्तर निर्गत भी है, परम्पर निर्गत भी है
और अनन्तरपरम्पर अनिर्गत भी है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि'नैरयिक अनन्तर निर्गत, परम्पर निर्गत, अनन्तर परम्पर
अनिर्गत है?' उ. भंते ! जिन नैरयिकों को नरक से निकले एक समय हुआ है
वे अनन्तर निर्गत हैं। जिन नैरयिकों को नरक से निकले अप्रथम (दो तीन) समय हो गए हैं वे परम्पर निर्गत हैं। जो नैरयिक विग्रहगति प्राप्त हैं वे अनन्तर परम्पर अनिर्गत हैं।
इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"नैरयिक जीव अनन्तर निर्गत भी है, परम्पर निर्गत भी है
और अनन्तर परम्पर अनिर्गत भी है। दं.२-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए।
प. दं. १. नेरइया णं भंते ! अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं
गच्छंति? कहिं उववज्जति? किं नेरइएसु उववज्जति? तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति? मणुस्सेसु उववज्जति?
देवेसु उववज्जति? उ. गोयमा ! नो नेरइएसु उववज्जंति,
तिरिक्खजोणिएसु उववजंति, मणुस्सेसु उववज्जति',
नो देवेसु उववज्जति। प. जइ तिरिक्खजोणिएसु उववजंति,
किं एगिदिय जाव पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिएसु
उववज्जति? १. जीवा. पडि.१,सु.३२
२८. चौबीस दंडकों के जीवों का उद्वर्तनानंतर उत्पाद का
प्ररूपणप्र. दं.१. भंते ! नैरयिक जीव अनन्तर (सीधे) उद्वर्तन करके
कहां जाते हैं, कहां उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं,
देवों में उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! वे नैरयिकों में उत्पन्न नहीं होते हैं,
तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं,
देवों में उत्पन्न नहीं होते हैं। प्र. यदि (वे) तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं तो क्या
एकेन्द्रियों यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं ?