Book Title: Dravyanuyoga Part 2
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 783
________________ १५२२ नवर- एगो अब्महिओ संचारिज्जइ । सेसं तं चैव । तियासंगोगो, चक्कसंजोगो, पंचसंगोगो, छक्क संजोगो य छण्हं जहा तहा सत्तण्ह वि भाणियव्वो । णवरं - एक्केक्को अब्भहिओ संचारेयव्वो जाव छक्कसंजोगो । अहवा दो सक्करव्यभाए, एगे वालुयप्पभाए जाव एगे असत्तमाए होज्जा अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए जाव एगे असत्तमाए होज्जा (१७१६) - विया. स. ९, उ. ३२, सु. २२ ९०. अट्ठ नेरइयाणं विवक्खा प. अट्ठ भंते ! नेरइया नेरइयपवेसणए णं पविसमाणा किं रयणप्पभाए होज्जा जाव अहे सत्तमाए होज्जा ? उ. १-७. गंगेया रयणप्पभाए वा होज्जा जाव आहेसत्तमाए या होज्जा, अहवा एगे रयणप्पभाए, सत्त सक्करप्पभाए होज्जा, एवं दुयासंजोगो जाय छक्कसंजोगो य जहा सत्तण्ह भणिओ तहा अट्टह वि भाणियव्वो, नवरं एक्केक्को अन्महिओ संचारेयव्यो। सेसं तं चेव जाव छक्कसंजोगस्स । अहवा तिण्णि सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए जाव एगे असत्तमाए होज्जा, १. अहवा एगे रयणप्पभाए जाव एगे तमाए, दो असत्तमाए होज्जा, २. अहवा एगे रयणप्पभाए जाव दो तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा, एवं संचारेयव्वं जाव अहवा दो रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए जाव एगे अहेसत्तमाए होज्जा (३००३) - विया. स. ९, उ. ३२, सु. २३ ९१. नव नेरइयाणं विवक्खा प. नव भंते! नेरइया नेरइयपवेसणए णं पविसमाणा किं रयणप्पभाए होज्जा जाय अहेसत्तमाए होज्जा ? द्रव्यानुयोग - (२) विशेष- एक नैरयिक का अधिक संचार करना चाहिए। शेष सभी पूर्ववत् जानना चाहिए। जिस प्रकार छह नैरपिकों के संयोगी चतु:संयोगी पंचसंयोगी और षट्संयोगी भंग कहे हैं, उसी प्रकार सात नैरयिकों के त्रिकसंयोगी आदि भंगों के विषय में भी कहना चाहिए। विशेष- यहाँ एक-एक नैरयिक का अधिक संचार करना चाहिए यावत् षट्संयोगी का अन्तिम भंग इस प्रकार कहना चाहिए। अथवा दो शर्कराप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में यावत् एक अधः सप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। (सात संयोगी १ भंग) अथवा एक रत्नप्रभा में एक शर्कराप्रभा में यावत् एक अधः सप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होता है । ' (१७१६) ९०. आठ नैरयिकों की विवक्षा प्र. भन्ते ! आठ नैरयिक जीव, नैरयिक प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए रत्नप्रभा में उत्पन्न होते हैं यावत् अधः सप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होते हैं ? उ. १-७. गांगेय ! रत्नप्रभा में भी उत्पन्न होते हैं यावत अधः सप्तमपृथ्वी में भी उत्पन्न होते हैं। अथवा एक रत्नप्रभा में और सात शर्कराप्रभा में उत्पन्न होते हैं । २ जिस प्रकार सात नैरयिकों के द्विकसंयोगी यावत् त्रिकसंयोगी, चतुःसंयोगी, पंचसंयोगी, षट्संयोगी भंग कहे गए हैं उसी प्रकार आठ नैरयिकों के भी द्विकसंयोगी आदि भंग कहने चाहिए। विशेष- एक-एक नैरयिक का अधिक संचार करना चाहिए। शेष सभी षट्संयोगी पर्यन्त पूर्ववत् कहना चाहिए। अथवा तीन शर्कराप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में यावत् एक अधः सप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। (सात संयोगी ७ भंग) १. अथवा एक रत्नप्रभा में यावत् एक तमःप्रभा में और दो अधः सप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं। २. अथवा एक रत्नप्रभा में यावत् दो तमःप्रभा में और एक अधः सप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। इसी प्रकार सभी स्थानों पर संचार करना चाहिए यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में एक शर्कराप्रभा में यावत् एक अधः सप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है । (३००३) ९१. नौ नैरयिकों की विवक्षा प्र. भन्ते ! नौ नैरयिक जीव नैरयिक प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में उत्पन्न होते हैं यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं ? एक संयोगी ७, द्विकसंयोगी १२६, त्रिकसंयोगी ५२५, चतुष्क संयोगी ७००, पंचसंयोगी ३१५, षट्संयोगी ४२ और सप्तसंयोगी १, यों कुल मिलाकर १७१६ भंग होते हैं। २. एक संयोगी ७, द्विकसंयोगी १४७, त्रिकसंयोगी ७३५, चतुष्कसंयोगी १२२५, पंचसंयोगी ७३५ षट्संयोगी १४७ और सप्तसंयोगी ७ ये कुल मिलाकर सब भंग ३००३ होते हैं।

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