Book Title: Dravyanuyoga Part 2
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 790
________________ वुक्कंति अध्ययन उ. गंगेया ! 9 सव्वत्थोवे पंचिंदियतिरिक्खजोणियपवेसणए, २. चउरिंदियतिरिक्खजोणियपवेसणए विसेसाहिए, ३. तेइंदियतिरिक्खजोणियपवेसणए विसेसाहिए, ४. बेइंदियतिरिक्खजोणियपवेसणए विसेसाहिए, ५. एगिंदियतिरिक्खजोणियपवेसणए विसेसाहिए। ९९. मणुस्स पवेसणगस्स परूवणं -विया. स. ९, उ. ३२, सु. ३४ प. मणुस्सपवेसणए णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? उ. गंगेया ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा १. सम्मुच्छिममणुस्सपवेसणए, २. गब्भवक्कंतियमणुस्सपवेसणए य। प. एगे भंते! मणुस्से मणुस्सपवेसणए णं पविसमाणे किं सम्मुच्छिममणुस्सेसु होज्जा, गब्भवक्कंतियमणुस्सेसु होज्जा ? उ. गंगेया ! सम्मुच्छिममणुस्सेसु वा होज्जा, गब्भवक्कंतियमस्सेसु वा होज्जा । प. दो भंते! मणुस्सा मणुस्सपवेसणएणं पविसमाणे किं सम्मुच्छिममणुस्सेसु होज्जा, गब्भवक्कंतियमणुस्सेसु होज्जा ? उ. गंगेया ! सम्मुच्छिममणुस्सेसु वा होज्जा, गब्भवक्कंतियमणुस्सेंसु वा होज्जा, अहवा एगे सम्मुच्छिममणुस्सेसु वा होज्जा, एगे गभवक्कंतियमणुस्सेसु वा होज्जा, एवं एएणं कमेण जहा नेरइयपवेसणए तहा मणुस्सपवेसणए वि भाणियव्वे जाव दस। प. संखेज्जा भंते! मणुस्सा मणुस्सपवेसणएणं पविसमाणे किं सम्मुच्छिममणुस्सेसु होज्जा, गब्भवक्कंतियमणुस्सेसु होज्जा ? उ. गंगेया ! सम्मुच्छिममणुस्सेसु वा होज्जा, गब्भवक्कंतियसेवा हो । अहवा एगे सम्मुच्छिममणुस्सेसु होज्जा, संखेज्जा गब्भवक्कंतियमणुस्सेसु होज्जा । अहवा दो सम्मुच्छिममणुस्सेसु होज्जा, संखेज्जा गभवक्कंतियमणुस्सेसु होज्जा, एवं एक्केक्कं ओसारितेसु जाव अहवा संखेज्जा सम्मुच्छिममणुस्सेसु होज्जा, संखेज्जा गब्भवक्कंतियमहोज्जा । प. असंखेज्जा भंते! मणुस्सा मणुस्सपवेसणएणं पविसमाणे किं सम्मुच्छिममणुस्सेसु होज्जा, गब्भवक्कंतियमणुस्सेसु होज्जा ? उ. गंगेया ! सव्वे वि ताव सम्मुच्छिममणुस्सेसु होज्जा । अहवा असंखेज्जा सम्मुच्छिममणुस्सेसु होज्जा, एगे गब्भवक्कंतियमणुस्सेसु होज्जा, १५२९ उ. गांगेय ! १. सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक हैं, २. ( उससे) चतुरिन्द्रिय- तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक विशेषाधिक हैं, ३. (उससे) त्रीन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक विशेषाधिक हैं, ४. (उससे) द्वीन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक- प्रवेशनक विशेषाधिक हैं, ५. (उससे) एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक विशेषाधिक हैं। ९९. मनुष्य प्रवेशनक का प्ररूपण प्र. भंते! मनुष्यप्रवेशनक कितने प्रकार का कहा गया है ? उ. गांगेय ! मनुष्यप्रवेशनक दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. सम्मूर्च्छिम मनुष्य प्रवेशनक, २. गर्भजमनुष्य-प्रवेशनक । प्र. भंते! मनुष्यप्रवेशनक द्वारा प्रवेश करता हुआ एक मनुष्य क्या सम्मूर्च्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होता है या गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होता है ? उ. गांगेय ! वह सम्मूर्च्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होता है अथवा गर्भज मनुष्यों में भी उत्पन्न होता है। प्र. भंते! मनुष्य प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए दो मनुष्य क्या सम्मूर्च्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं या गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं ? उ. गांगेय ! वे सम्मूर्च्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, अथवा गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं। अथवा एक सम्मूर्च्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होता है और एक गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होता है। इस प्रकार इस क्रम से जिस प्रकार नैरयिक प्रवेशनक में कहा उसी प्रकार मनुष्य प्रवेशनक का मनुष्य में भी दस मनुष्यों पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. भंते! संख्यात मनुष्य, मनुष्य प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या सम्मूर्च्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं या गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं ? उ. गांगेय ! वे सम्मूर्च्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, अथवा गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं । अथवा एक सम्मूर्च्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होता है और संख्यात गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं। अथवा दो सम्मूर्च्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं और संख्यात गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार उत्तरोत्तर एक-एक बढ़ाते हुए यावत् अथवा संख्यात सम्मूर्च्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं और संख्यात गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं। प्र. भंते ! असंख्यात मनुष्य, मनुष्यप्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या सम्मूर्च्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं या गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं ? उ. गांगेय ! वे सभी सम्मूर्च्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं। अथवा असंख्यात सम्मूर्च्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं और एक गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806