Book Title: Dravyanuyoga Part 2
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 788
________________ वुक्कंति अध्ययन ६-१९. एवं रयणप्पभं अमुयंतेसु जहा चउण्ह चउक्कसंजोगो भणिओ तहा भाणियव्यं जाव २०. अहवा रयणप्पभाए, धूमप्पभाए, तमाए अहेसत्तमाए होज्जा,(२०) १. अहवा रयणप्पभाए, सक्करप्पभाए, वालुयप्पभाए, पंकप्पभाए,धूमप्पभाए य होज्जा, २. अहवा रयणप्पभाए, सक्करप्पभाए, वालुयप्पभाए, पंकप्पभाए,तमाए य होज्जा, ३. अहवा रयणप्पभाए, सक्करप्पभाए, वालुयप्पभाए, पंकप्पभाए, अहेसत्तमाए य होज्जा, ४. अहवा रयणप्पभाए, सक्करप्पभाए, वालुयप्पभाए, धूमप्पभाए, तमाए य होज्जा, ५-१४. एवं रयणप्पभं अमुयंतेसु जहा पंचण्हं पंचकसंजोगो तहा भाणियव्यं। १५२७ ६-१९. रलप्रभा को न छोड़ते हुए जिस प्रकार चार नैरयिक जीवों के चतुःसंयोगी भंग कहे हैं, उसी प्रकार यहाँ भी भंग कहने चाहिए यावत् २०. अथवा रत्नप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं। (२०) (पंचसंयोगी पन्द्रह भंग-) १. अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पंकप्रभा और धूमप्रभा में उत्पन्न होते हैं। २. अथवा रलप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पंकप्रभा और तमःप्रभा में उत्पन्न होते हैं। ३. अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पंकप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं। ४. अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभ, धूमप्रभा और तमः:प्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होते हैं। ५-१४. रत्नप्रभा को न छोड़ते हुए जिस प्रकार पाँच नैरयिक जीवों के पंचसंयोगी भंग कहे हैं, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए। १५.अथवा यावत् रलप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं। (१५) (षट्सयोगी छः भंग) १. अथवा रलप्रभा, शर्कराप्रभा यावत् धूमप्रभा और तमःप्रभा में उत्पन्न होते हैं। २. अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा यावत् धूमप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं। ३. अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा यावत् पंकप्रभा, तम प्रभा और अधःसप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होते हैं। ४. अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, धूमप्रभा, तम प्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं। ५. अथवा रलप्रभा, शर्कराप्रभा, पंकप्रभा यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं। ६. अथवा रत्नप्रभा, वालुकाप्रभा यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं। (६) (सप्तसंयोगी एक भंग-) १. अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं। (६४) १५. जाव अहवा रयणप्पभाए, पंकप्पभाए, धूमप्पभाए तमाए, अहेसत्तमाए होज्जा।(१५) १. अहवा रयणप्पभाए, सक्करप्पभाए जाव धूमप्पभाए, तमाए य होज्जा, २. अहवा रयणप्पभाए, सक्करप्पभाए, धूमप्पभाए, अहेसत्तमाए य होज्जा, ३. अहवा रयणप्पभाए, सक्करप्पभाए जाव पंकप्पभाए, तमाए य अहेसत्तमाए य होज्जा, ४. अहवा रयणप्पभाए, सक्करप्पभाए, वालुयप्पभाए, धूमप्पभाए, तमाए,अहेसत्तमाए होज्जा, ५. अहवा रयणप्पभाए, सक्करप्पभाए,पंकप्पभाए जाव अहेसत्तमाए य होज्जा, ६. अहवा रयणप्पभाए, वालुयप्पभाए जाव अहेसत्तमाए य होज्जा।(६) १. अहवा रयणप्पभाए य सक्करप्पभाए जाव अहेसत्तमाए होज्जा। (६४) -विया. स. ९, उ. ३२, सु.२८ ९६. नेरइयप्पवेसणगस्स अप्प-बहुत्तंप. एयस्स णं भंते ! रयणप्पभापुढविनेरइयप्पवेसणगस्स सक्करप्पभापुढविनेरइयप्पवेसणगस्स जाव अहेसत्तमापुढविनेरइयप्पवेसणगस्स य कयरे कयरेहितो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? ९६. नैरयिक प्रवेशनक का अल्पबहुत्वप्र. भंते ! रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक प्रवेशनक, शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिक प्रवेशनक यावत् अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिक प्रवेशनक में से कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक है? १. असंयोगी १, द्विकसंयोगी ६, त्रिकसंयोगी १५, चतुःसंयोगी २०, पंचसंयोगी १५, षट्सयोगी ६, सप्तसंयोगी १ इस प्रकार उत्कृष्ट पद के सभी मिलाकर चौंसठ भंग होते हैं।

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