Book Title: Dravyanuyoga Part 2
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 802
________________ परिशिष्ट-२ पृ. ३८०, सू. २६-सकषायी आदि आहारक या अनाहारक। पृ. ६९३, सू. ११७-अश्रुत्वा अवधिज्ञानी में कषाय। प्र. ६९५, सू. ११८-श्रुत्वा अवधिज्ञानी में कषाय। १०, सू. १२०-सकषाया-अकषाया जाव ज्ञाना ह या अज्ञानी। पृ. ७८३, सू. १७७-क्रोध आय आदि। पृ. ८०९, सू. ६-पुलाक आदि सकषायी या अकषायी। पृ. ८३१, सू. ७-सामायिक संयत आदि सकषायी या । अकषायी। पृ. ९२१, सू. ४५-कषाय-अकषाय भाव में स्थित संवृत अणगार की क्रियाओं का प्ररूपण। पृ. ११२९, सू.७१-क्रोधादि कषायवशात जीवों के कर्म बंधादि का प्ररूपण। पृ. १२८२, सू. ७६-उत्पल पत्र के जीव में कषाय। पृ. १४७५, सू. ३१-रत्नप्रभा आदि नरकावासों में क्रोध कषायी यावत् लोभ कषायी जीवों की उत्पत्ति और उद्वर्तन। पृ. १५७८, सू. २२-कृतयुग्म एकेन्द्रिय क्रोध कषायी यावत् लोभ कषायी युका पृ. १०९ , सू. २३-क्रोधादि चार स्थानों द्वारा आठ कर्मों का चयादि का प्ररूपण। पृ. १०९४, सू. २४-कषाय वेदनीय नोकषाय वेदनीय के भेद-प्रभेद। पृ. ११०७, सू. ३६-सकषायी-अकषायी द्वारा पाप कर्म बंधन। पृ. ११७२, सू. १२९-सकषायी-अकषायी आदि में क्रियावादी आदि जीवों द्वारा आयुबंध का प्ररूपण। पृ. १६७८, सू. ७-कषायात्मा का अन्य आत्माओं के साथ सम्बन्ध। पृ. १७१३, सू. ३-सकषायी आदि चरम या अचरम। पृ. १६८७, सू. १०-कषाय समुद्घात का वर्णन। " पृ. १७00, सू. १७-कषाय समुद्घात का विस्तार से वर्णन। पृ. १६०४, सू. ३-नैरयिकों में उत्पन्न होने वाले तिर्यंच पंचेन्द्रिययोनिकों में चार कषाय। ३१. कर्म अध्ययन (पृ. १०७६-१२१७) धर्मकथानुयोग भाग १, खण्ड १, पृ. ४६, सू. १४८-बीस तीर्थंकर नाम गोत्र कर्म उपार्जन। भाग १, खण्ड १, पृ. १५०, सू. ३७२-नौ जीवों द्वारा तीर्थंकर नाम गोत्र कर्म का उपार्जन। भाग २, खण्ड २, पृ. २४०, सू. ४६२-भोगों में कर्म का संचय गोले की उपमा। भाग २, खण्ड २, पृ. ३५९, सू. ६४२-पाप कर्म फल विषयक कालोदयी के प्रश्नोत्तर। भाग २, खण्ड २, पृ. ३६०, सू. ६४३-कल्याण कर्म के विषय में प्रश्नोत्तर। - 5 भाग २, खण्ड २, पृ. ३६०, सू. ६४४-अग्नि लगाने व बुझाने वाले के कर्म बंध के प्रश्नोत्तर। गणितानुयोग पृ. १४, सू.३० (२)-जीव का पाप कर्म बाँधना। पृ. १४, सू. ३० (४)-जीव का मोहनीय कर्म बाँधना। चरणानुयोग भाग १, पृ. १४७, सू. २४४-सयोगी के ईर्यापथिक कर्म बंध व अन्त में अकर्म। भाग १, पृ. २४४, सू. ३४५-छह जीव निकायों की हिंसा कर्म बंध का हेतु। भाग २, पृ.८८, सू. २३१-राग-द्वेष बंधन। भाग २, पृ.१०६, सू. २६८-अल्पायु बंध के कारण। भाग २, पृ. १०६, सू. २६९-दीर्घायु बंध के कारण। भाग २, पृ. १०६, सू. २७०-अशुभ दीर्घायु बंध के कारण। भाग २, पृ. १०७, सू. २७१-शुभ दीर्घायु बंध के कारण। भाग २, पृ. १८५, सू. ३७०-महामोहनीय कर्म बाँधने के तीस स्थान। भाग २, पृ. १६३, सू. ३८२-सांपरायिक कर्मों का त्रिकरण निषेध। भाग २, पृ. ४०२, सू. ८०६-कर्म भेदन में पराक्रम। भाग २, पृ. ४०४, सू. ८०८-बंधन से मुक्त होने का पराक्रम। भाग २, पृ. ४११, सू.८२१-कर्म निर्जरा का फल। भाग २, पृ. १२९, सू. २२०-२२१-दुर्लभ बोधि सुलभ बोधि करने वाले कर्म। द्रव्यानुयोग पृ. १९५, सू. ९८-चौबीस दण्डक में समान कर्म। पृ. १९५, सू. ९८-चौबीस दण्डक में समान आयु। पृ.८११, सू. ६-पुलाक आदि की कर्म प्रकृतियों का बंध। पृ.८११, सू. ६-पुलाक आदि की कर्म प्रकृतियों का वेदन। पृ.८११, सू.६-पुलाक आदि की कर्म प्रकृतियों की उदीरणा। पृ. ८३३, सू. ७-सामायिक संयत आदि में कितनी कर्म प्रकृतियों का बंध। पृ. ८३३, सू. ७-सामायिक संयत आदि में कितनी कर्म प्रकृतियों का वेदन। पृ. ८३३, सू. ७-सामायिक संयत आदि में कितनी कर्म प्रकृतियों की उदीरणा। पृ.८५८, सू. २१-सलेश्य चौबीस दण्डकों में सभी समान कर्म वाले नहीं। पृ. ८५८, सू. २१-सलेश्य चौबीस दण्डकों में सभी समान आयु वाले नहीं। पृ. ९२६, सू. ४३-जीव चौबीस दण्डकों में क्रियाओं द्वारा कर्म प्रकृतियों का बंध।

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