Book Title: Dravyanuyoga Part 2
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 805
________________ भाग २, खण्ड ६, पृ. ५०, सू. १०३-धन्य की सौधर्म कल्प में उत्पत्ति। भाग २, खण्ड ६, पृ. ९३, सू. २०२-मृगापुत्र की नरक तिर्यञ्च मनुष्य आदि भवों में उत्पत्ति। गणितानुयोग • पृ. १४, सू. ३० (१)-जीव का मरना उत्पन्न होना। ___ पृ. ३७३, सू. ७४९-कालोद समुद्र व पुष्करवर द्वीप के जीवों की एक दूसरे में उत्पत्ति। द्रव्यानुयोग पृ. ८७०, सू. ३०-अणगार का लेश्यानुसार उपपात का प्ररूपण। पृ. ८७२, सू. ३२-सलेश्य चौबीस दण्डकों द्वारा उत्पाद उद्वर्तन। पृ. १२६७, सू.११-एकेन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति। पृ. १२६८, सू. १२-विकलेन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति। पृ. १२६९, सू. १३-पंचेन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति। पृ. १२६७, सू.११-एकेन्द्रिय जीवों के मरण। पृ. १२६८, सू. १२-विकलेन्द्रिय जीवों के मरण। पृ. १२६९, सू. १३-पंचेन्द्रिय जीवों के मरण। द्रव्यानुयोग-(२) पृ. १२७९, सू. ३६-उत्पल पत्र वाले जीव की उत्पत्ति। पृ. १२८३, सू. ३६-उत्पल पत्र वाले जीव की गति-आगति। पृ. १२८४, सू. ३६-उत्पल पत्र के जीव मरकर कहाँ जाते कहाँ उत्पन्न होते। पृ. १३८०, सू. १०५-एकोरूक द्वीप के मनुष्यों की देवलोक में उत्पत्ति। पृ. १५७६, सू. २२-कृतयुग्म एकेन्द्रिय जीव की उत्पत्ति। पृ. १५७६, सू. २२-कृतरम्प एकेन्द्रिय जीव एक समय में कितने। पृ. १५७८, सू. २२-कृतयुग, एकेन्द्रिय का जन्म-मरण। पृ. १५८४, सू. २७-सोलह : न्द्रिय महायुग्मों में उत्पत्ति। पृ. ११४४, सू. ८४-उत्पत्ति की अपेक्षा एकेन्द्रियों में कर्म बंध का प्ररूपण। पृ. १९०६, सू. ३४-छहों दिशाओं में जीवों की गति-आगति। पृ. १६०२, सू. २-गति की अपेक्षा नैरयिकों के उपपात का प्ररूपण। पृ. १६०३, सू. ३-नैरयिकों में उत्पन्न होने वाले पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में उपपात का प्ररूपण। पृ. १६०४, सू. ३-नैरयिको - उत्पन्न होने वाले पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की गति-जागति। १. पृ. १५७६ से १५९९ में बत्तीस द्वारों का विस्तृत वर्णन है। एकेन्द्रिय के द्वारों का उल्लेख वक्तंति आदि सभी अध्ययनों में किया है उसी प्रकार द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, संज्ञी पंचेन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय का वर्णन प्रथम समयादि सलेश्य, भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक आदि के महायुग्म त्र्योज, द्वापर युग्म, कल्योज के रूप में जानना चाहिए। नैरयिकों में उत्पन्न होने वाले उपरोक्त बीस द्वारों के समान ही चौबीस दण्डकों में बीस द्वारों का पृ. १६०२ से १६७३ तक विस्तृत वर्णन है। २.

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