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परिशिष्ट-२ पृ. १५२, सू. ६७-तिर्यञ्चयोनिकों के भेद। पृ. १५२८, सू. ९७-तिर्यञ्चयोनिक प्रवेशनक। पृ. १५०८, सू.७९-तिर्यञ्चयोनिकों की नरक में उत्पत्ति। पृ. ९९७, सू. १७-तिर्यञ्चयोनिकों के दुःखों का वर्णन।
३६. मनुष्य गति अध्ययन (पृ. १२९६-१३८१) चरणानुयोग
भाग १, पृ. ४८, सू. ६६-माता-पितादि का प्रत्युपकार दुष्कर।
भाग १, पृ. ४९, सू. ६८-चार प्रकार के धार्मिक-अधार्मिक पुरुष। द्रव्यानुयोग
पृ. ९, सू. ४-मनुष्य के प्रकार। पृ. १६१, सू. ६९-मनुष्यों के प्रकार। पृ. १५00, सू. ७०-उत्तरकुरु के मनुष्यों के उत्पात। पृ. १५०८, सू. ८०-दुःशील-सुःशील मनुष्यों की उत्पत्ति। पृ. १५२९, सू. ९९-मनुष्य प्रवेशनक।
पृ. १५०६, सू. ७४-सब जीवों का मातादि के रूप में पूर्वोत्पन्नत्व।
पृ. १५४२, सू. ४-मनुष्य स्त्री गर्भ के चार प्रकार। पृ. १५६४, सू. ५-स्त्रियों में कृतयुग्मादि का प्ररूपण। पृ. ९९९, सू. १८-मनुष्यों के दुःखों का वर्णन। पृ. १०३६, सू. ५७-लोभग्रस्त मनुष्य।
३७. देव गति अध्ययन (पृ. १३८२-१४३१) धर्मकथानुयोग
भाग १, खण्ड १, पृ. ७-१२, सू. २१-३२-छप्पन दिशाकुमारियों द्वारा कृत जन्म महोत्सव।
भाग २, खण्ड ५, पृ. २५, सू. ४१-किल्विषिक देवों के भेद।
भाग २, खण्ड ६, पृ. १२, सू. २०-देवेन्द्र देवराज शक्र असुरेन्द्र चमर द्वारा कोणिक की सहायता। गणितानुयोग
पृ. १५६, सू. ११८-विजयद्वार के प्रासादावतंसक में चार प्रकार के देव। द्रव्यानुयोग
पृ. ९, सू.४-देव गति के भेद-प्रभेद। पृ. १३, सू. १४-सौधर्मादि देवलोकों में अवगाढ़-अनवगाढ़। पृ. १७१, सू. ७२-देवों के प्रकार। पृ. ४५४, सू. १८-पाँच प्रकार के देवों की विकुर्वणा शक्ति। पृ. ८७८, सू. ४0-लेश्यायुक्त देवों को जानना-देखना।
पृ. ७१८, सू. १२३-अणगार द्वारा वैक्रिय समुदघात से समवहत देवादि का जानना-देखना।
-पृ.१०६-१२-देवों में मैथुन प्रवृत्ति की प्ररूपणा।
___7 पृ. १०९९, सू. २८-देव की अपेक्षा बँधने वाली नाम कर्म की उत्तर प्रकृतियाँ।
पृ. १२१४, सू. १७३-देवों द्वारा अनन्त कर्माशों के क्षयकाल का प्ररूपण।
पृ. १४९६, सू. ५८-भव्य द्रव्य देव का उपपात। पृ. १४९८, सू. ६३-भव्य द्रव्य देव का उद्वर्तन। पृ. १४९६, सू. ५९-नर देव का उपपात। पृ. १४९८, सू. ६४-नर देव का उद्वर्तन। पृ. १४९७, सू. ६०-धर्म देव का उपपात। पृ. १४९८, सू. ६५-धर्म देव का उद्वर्तन। पृ. १४९७, सू. ६१-देवाधि देव का उपपात। पृ. १४९९, सू. ६६-देवाधि देव का उद्वर्तन। पृ. १४९७, सू. ६२-भाव देव का उपपात। पृ. १४९९, सू. ६३-भाव देव का उद्वर्तन।
पृ. १४९९, सू. ६८-असंयत भव्य द्रव्य देव का देवलोक में उत्पाद।
पृ. १५००, सू. ६९-किल्विषिक देव में उत्पत्ति के कारण। पृ. ५३४, सू. ३०-शक्रेन्द्र की सावध-निरवद्य भाषा।
पृ. ५४२, सू. २५-देव आदिकों की उस-उस समय में एक योग प्रवृत्ति।
पृ. १०३६, सू. ५७-लोभग्रस्त देव। पृ. १०६२, सू. १२-देवों में मैथुन प्रवृत्ति।
पृ. १०९९, सू. २८-देवों की अपेक्षा बँधने वाली नाम कर्म की उत्तर प्रकृतियाँ।
पृ. ११७७, सू. १३६-देव का च्यवन के पश्चात् भवायु का प्रतिसंवेदन।
पृ. १५४२, सू. ५-गर्भगत जीव के देव में उत्पत्ति के कारण।
पृ.१५०१, सू.७१-महर्धिक देव की नाग-मणि या वृक्ष के रूप में उत्पत्ति और सिद्धत्व का प्ररूपण।
पृ. १५३०, सू. १०१-देव प्रवेशनक। पृ. १५०७, सू.७७-वैमानिक देवों का अनन्त बार पूर्वोत्पन्नत्व। पृ. १५४२, सू. ५-गर्भगत जीव के देवों में उत्पत्ति के कारण।
पृ. ११७७, सू. १३६-देव का च्यवन के पश्चात् भवायु का प्रतिसंवेदन।
३८. वक्कंति अध्ययन (पृ. १४३२-१५३५) धर्मकथानुयोग
भाग १, खण्ड २, पृ. १२७, सू. २७५-ईशान देवेन्द्र की उत्पत्ति और च्यवन।
भाग २, खण्ड ४, पृ. ३१४, सू. ३३७-उदायी हस्तीराज की नरक में उत्पत्ति।
भाग २, खण्ड ५, पृ.७३-७५, सू.११५-११६-गोशालक की नरक तिर्यञ्च देव आदि भवों में उत्पत्ति।