Book Title: Dravyanuyoga Part 2
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 800
________________ परिशिष्ट-२ संदर्भस्थल सूची द्रव्यानुयोग के अध्ययनों में वर्णित विषयों का धर्मकथानुयोग, चरणानुयोग, गणितानुयोग व द्रव्यानुयोग के अन्य अध्ययनों में जहाँ-जहाँ जितने उल्लेख हैं उनका पृष्ठांक व सूत्रांक सहित विषयों की सूची दी जा रही है, जिज्ञासु पाठक उन-उन स्थलों से पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लें। २५. संयत अध्ययन (पृ. ७८९-८४१) पृ. १२६८, सू. १२-विकलेन्द्रिय जीवों में लेश्याएँ। पृ. १२६९, सू. १३-पंचेन्द्रिय जीवों में लेश्याएँ। द्रव्यानुयोग पृ. १२७५, सू. २४-कृष्णलेश्यी एकेन्द्रियों के भेद-प्रभेद। पृ. ११८, सू. २१-संयत आदि जीव। पृ. १२७६, सू. २५-अनन्तरोपपन्नक कृष्णलेश्यी एकेन्द्रियों के पृ. १८६, सू. ९१-कालादेश की अपेक्षा संयत। भेद-प्रभेद। पृ. २६५, सू. २-चौबीस दण्डक में संयत द्वार द्वारा । पृ. १२७६, सू. २६-परम्परोपपन्नक कृष्णलेश्यी एकेन्द्रियों के प्रथमाप्रथमत्व। भेद-प्रभेद। पृ. ३८०, सू. २६-संयत आदि आहारक या अनाहारक। . पृ. १२७६, सू. २७-अनन्तरावगाढ़ादि कृष्णलेश्यी एकेन्द्रियों के प्र. ११३५, सू. ९७-संयत-असंयत की अपेक्षा आठ कर्म भेद-प्रभेद। प्रकृतियों का बन्ध। पृ. ११५०, सू. ९४-लेश्या की अपेक्षा एकेन्द्रियों में स्वामित्व पृ. १७१३, सू. ३-संयत आदि जीव चरम या अचरम। बंध और वेदन का प्ररूपण। २६. लेश्या अध्ययन (पृ. ८४२-८९५) पृ. ११७०, सू. १२८-सलेश्य क्रियावादी आदि जीवों का आयु बंध। चरणानुयोग पृ. १२७६, सू. २८-नील-कापोतलेश्यी एकेन्द्रियों के भेद-प्रभेद। भाग २, पृ. ९0, सू. २३१-छह लेश्या। पृ. १२७७, सू. ३०-कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक एकेन्द्रियों के द्रव्यानुयोग भेद-प्रभेद। पृ. ९०, सू. २-लेश्या परिणाम के छह प्रकार। पृ. १२७७, सू. ३१-अनन्तरोपपन्नकादि कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक एकेन्द्रियों के भेद-प्रभेद। पृ. ११६, सू. २१-सलेश्य-अलेश्य जीव। पृ. १२७८, सू. ३२-नील-कापोतलेश्यी भवसिद्धिक एकेन्द्रियों पृ. ११९, सू. २१-कृष्णलेश्यी आदि जीव। के भेद-प्रभेद। पृ. १८५, सू. ९१-कालादेश की अपेक्षा लेश्या। पृ. १२७८, सू. ३४-कृष्ण-नील-कापोतलेश्यी अभवसिद्धिक पृ. १९१, सू. ९६-चौबीस दण्डकों में कृष्णलेश्यी आदि की एकेन्द्रियों के भेद-प्रभेद। वर्गणा। पृ. १२८०, सू. ३६-उत्पल पत्र आदि में जीवों की लेश्याएँ। पृ. १९५, सू. ९८-चौबीस दण्डकों में समान लेश्या वाले। पृ. १४७५, सू. ३१-रत्नप्रभा पृथ्वी के नरकावास में पृ. २०४, सू. १00-क्रोधोपयुक्तादि भंगों में लेश्या। कापोतलेश्यी की उत्पत्ति और उद्वर्तन। पृ. २६४, सू. २-चौबीस दण्डक में लेश्या द्वार द्वारा पृ. १५५७, सू. २०-कृष्ण-नील-कापोतलेश्यी एकेन्द्रिय जीवों प्रथमाप्रथमत्व। की विग्रहगति के समय का प्ररूपण। पृ. ६९२, सू. ११७-अश्रुत्वा अवधिज्ञानी में तीन लेश्या। पृ. १५७०-१५७२, सू. १४-१६-क्षुद्रकृतयुग्मादि की अपेक्षा पृ.६९५, सू. ११८-श्रुत्वा अवधिज्ञानी में छह लेश्या। कृष्ण-नील-कापोतलेश्यी नैरयिकों के उत्पाद का प्ररूपण। पृ. ७०९, सू. १२०-लेश्यी-अलेश्यी ज्ञानी है या अज्ञानी। पृ. १५७७, सू. २२-कृतयुग्मादि एकेन्द्रिय कृष्णलेश्यी यावत् पृ. ३७९, सू. २६-सलेश्य आदि आहारक या अनाहारक। तेजोलेश्यी हैं? पृ. ५६१, सू.१-लेश्यागति व लेश्यानुपातगति का स्वरूप। पृ. १५८२, सू. २५-लेश्याओं की अपेक्षा महायुग्म वाले एकेन्द्रियों में उत्पातादि। पृ.८१०, सू. ६-पुलाक आदि सलेश्य है या अलेश्य। पृ. १५८३, सू. २६-कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक कृतयुग्म राशि में पृ.८३२, सू. ७-सामायिक संयत आदि सलेश्य है या अलेश्य। उत्पत्ति आदि। पृ. ११०५, सू. ३६-सलेश्य जीवों द्वारा पाप कर्म बंधन। पृ. १५८३, सू. २६-नीललेश्यी भवसिद्धिक कृतयुग्म राशि में पृ. १२६६, सू. ११-एकेन्द्रिय जीवों में लेश्याएँ। उत्पत्ति आदि। (3)

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