Book Title: Dravyanuyoga Part 2
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 792
________________ वुक्कति अध्ययन १५३१ अथवा ज्योतिष्क, भवनवासी और वाणव्यन्तर देवों में उत्पन्न होते हैं, अथवा ज्योतिष्क, भवनवासी और वैमानिक देवों में उत्पन्न होते हैं, अथवा ज्योतिष्क, वाणव्यन्तर और वैमानिक देवों में उत्पन्न होते हैं, अथवा ज्योतिष्क, भवनवासी, वाणव्यन्तर और वैमानिक देवों में उत्पन्न होते हैं। १०२. भवनवासी आदि देव प्रवेशनक का अल्पबहुत्व प्र. भंते ! भवनवासीदेव-प्रवेशनक, वाणव्यन्तरदेव-प्रवेशनक, ज्योतिष्कदेव-प्रवेशनक और वैमानिक देव-प्रवेशनक इन चारों प्रवेशनकों में से कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक है? उ. गांगेय !१. सबसे थोड़े वैमानिकदेव-प्रवेशनक हैं, २. (उनसे) भवनवासीदेव-प्रवेशनक असंख्यातगुणे हैं, ३. (उनसे) वाणव्यन्तरदेव-प्रवेशनक असंख्यातगुणे हैं, ४. (उनसे) ज्योतिष्कदेव-प्रवेशनक संख्यातगुणे हैं। अहवा जोइसिएसु य, भवणवासीसु य, वाणमंतरेसु य होज्जा। अहवा जोइसिएसु य, भवणवासीसु य, वेमाणिएसु य होज्जा। अहवा जोइसिएसु य, वाणमंतरेसु य, वेमाणिएसु य होज्जा। अहवा जोइसिएसु य, भवणवासीसु य, वाणमंतरेसु य, वेमाणिएसु य होज्जा। -विया. स. ९, उ.३२, सु. ४२-४५ १०२. भवणवासिआइ देवपवेसणगस्स अप्प-बहुत्तं प. एयस्स णं भंते ! भवणवासीदेवपवेसणगस्स वाणमंतरदेवपवेसणगस्स जोइसियदेवपवेसणगस्स वेमाणियदेवपवेसणगस्स य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गंगेया !१. सव्वत्थोवे वेमाणियदेवपवेसणए, २.भवणवासीदेवपवेसणए असंखेज्जगुणे, ३.वाणमंतरदेवपवेसणए असंखेज्जगुणे, ४. जोइसियदेवपवेसणए संखेज्जगुणे। -विया. स. ९, उ. ३२, सु. ४६ १०३. नेरइय-तिरिक्खजोणिय-मणुस्स-देव-पवेसणगाणंअप्प बहुत्तंप. एयस्स णं भंते ! नेरइयपवेसणगस्स तिरिक्ख जोणियपवेसणगस्स मणुस्सपवेसणगस्स, देवपवेसणगस्स य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गंगेया !१. सव्वत्थोवे मणुस्सपवेसणए, २. नेरइयपवेसणए असंखेज्जगुणे, ३. देवपवेसणए असंखेज्जगुणे, ४.तिरिक्खजोणियपवेसणए असंखेज्जगुणे। -विया. स. ९, उ. ३२, सु. ४७ १०४. चउवीसदंडएसुसओ उववाय-उव्वट्टण परूवणं प. दं.१.सओ भंते ! नेरइया उववज्जति, असओ भंते ! नेरइया उववज्जति? उ. गंगेया ! सओ नेरइया उववज्जंति, नो असओ नेरइया उववज्जति। दं.२-२४. एवं जाव वेमाणिया। प. दं.१. सओ भंते ! नेरइया उव्वटुंति, __असओ भंते ! नेरइया उव्वटृति? उ. गंगेया ! सओ नेरइया उव्वदृति, नो असओ नेरइया उव्वदृति। दं.२-२४. एवं जाव वेमाणिया, णवर-जोइसिय-वेमाणिएसु “चयंति" भाणियव्यं । १०३. नैरयिक - तिर्यञ्चयोनिक - मनुष्य - देव - प्रवेशनकों का अल्पबहुत्वप्र. भंते ! इन नैरयिक-प्रवेशनक, तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक, मनुष्य-प्रवेशनक और देव-प्रवेशनक इन चारों प्रवेशनकों में से कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक है? उ. गांगेय ! १. सबसे अल्प मनुष्य-प्रवेशनक है, २. (उससे) नैरयिक-प्रवेशनक असंख्यातगुणा है, ३. (उससे) देव-प्रवेशनक असंख्यातगुणा है, ४. (उससे) तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक असंख्यातगुणा है। १०४. चौवीस दंडकों में सत् के उत्पाद-उद्वर्तन का प्ररूपण प्र. दं. १. भंते ! सत् (विद्यमान) नैरयिक जीव उत्पन्न होते हैं या असत् (अविद्यमान) नैरयिक जीव उत्पन्न होते हैं? उ. गांगेय ! सत् नैरयिक उत्पन्न होते हैं, किन्तु असत् नैरयिक उत्पन्न नहीं होते हैं। दं.२-२४. इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. दं.१. भंते ! सत् नैरयिक उद्वर्तन करते हैं या असत् नैरयिक उद्वर्तन करते हैं ? उ. गांगेय ! सत् नैरयिक उद्वर्तन करते हैं, किन्तु असत् नैरयिक उद्वर्तन नहीं करते हैं। दं.२-२४. इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त जानना चाहिए। विशेष-ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के लिए च्यवन करते हैं, ऐसा कहना चाहिए। प्र. द.१-२४.भंते ! नैरयिक जीव सत् नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं या असत् नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं ? प. दं.१-२४. सओ भंते ! नेरइया उववज्जंति, असओ भंते! नेरइया उववज्जति?

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