Book Title: Dravyanuyoga Part 2
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 787
________________ द्रव्यानुयोग-(२) अथवा असंख्यात रत्नप्रभा में, असंख्यात शर्कराप्रभा में यावत् असंख्यात अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं।' १५२६ अहवा असंखेज्जा रयणप्पभाए असंखेज्जा सक्करप्पभाए जाव असंखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। -विया.स.९,उ.३२, सु.२७ ९५. उक्कोसणेरइयाणं विवक्खाप. उक्कोसा णं भंते ! नेरइया नेरइयप्पवेसणए णं किं रयणप्पभाए होज्जा जाव अहेसत्तमाए होज्जा? उ. गंगेया ! सव्वे वि ताव रयणप्पभाए होज्जा, १. अहवा रयणप्पभाए य सक्करप्पभाए य होज्जा, २. अहवा रयणप्पभाए य वालुयप्पभाए य होज्जा, ३-६. एवं जाव अहवा रयणप्पभाए य अहेसत्तमाए य होज्जा। (६) १. अहवा रयणप्पभाए य सक्करप्पभाए य वालुयप्पभाए य होज्जा, . २-५. एवं जाव अहवा रयणप्पभाए, सक्करप्पभाए य अहेसत्तमाए य होज्जा, ६. अहवा रयणप्पभाए, वालुयप्पभाए, पंकप्पभाए य होज्जा जाव ७-९. अहवा रयणप्पभाए, वालुयप्पभाए, अहेसत्तमाए य होज्जा, १०. अहवा रयणप्पभाए, पंकप्पभाए य, धूमप्पभाए य होज्जा, ११-१४. एवं रयणप्पभं अमुयंतेसु जहा तिण्हं तियासंजोगो भणिओ तहा भाणियव्वं जाव ९५. उत्कृष्ट नैरयिकों की विवक्षा सेप्र. भंते ! नैरयिक जीव नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए उत्कृष्ट पद में क्या रत्नप्रभा में उत्पन्न होते हैं यावत् अधःसप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होते हैं ? उ. गांगेय ! उत्कृष्टपद में सभी नैरयिक रत्नप्रभा में उत्पन्न होते हैं। (द्विकसंयोगी ६ भंग) १. अथवा रत्नप्रभा और शर्कराप्रभा में उत्पन्न होते हैं। २. अथवा रत्नप्रभा और वालुकाप्रभा में उत्पन्न होते हैं। ३-६. इसी प्रकार यावत् अथवा रत्नप्रभा और अधः सप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं। (६) (त्रिकसंयोगी १५ भंग) १. अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा और वालुकाप्रभा में उत्पन्न होते हैं। २-५. इसी प्रकार यावत् अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं। ६. अथवा रत्नप्रभा, वालुकाप्रभा और पंकप्रभा में उत्पन्न होते हैं यावत् ७-९. अथवा रत्नप्रभा, वालुकाप्रभा और अधःसप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होते हैं। १०. अथवा रत्नप्रभा, पंकप्रभा और धूमप्रभा में उत्पन्न होते हैं। ११-१४. जिस प्रकार रत्नप्रभा को न छोड़ते हुए तीन नैरयिक जीवों के त्रिकसंयोगी भंग कहे हैं, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए यावत् १५.अथवा रलप्रभा, तमःप्रभा और अधःसप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होते हैं। (१५) (चतुःसंयोगी २० भंग) १. अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा वालुकाप्रभा और पंकप्रभा में उत्पन्न होते हैं, २. अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा और धूमप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होते हैं, यावत् ३-४. अथवा रलप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं। ५. अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, पंकप्रभा और धूमप्रभा में उत्पन्न होते हैं। १५. अहवा रयणप्पभाए, तमाए य, अहेसत्तमाए य होज्जा।(१५) १. अहवा रयणप्पभाए य, सक्करप्पभाए य, वालुयप्पभाए य, पंकप्पभाए य होज्जा, २. अहवा रयणप्पभाए, सक्करप्पभाए, वालुयप्पभाए, धूमप्पभाए य होज्जा जाव ३-४. अहवा रयणप्पभाए, सक्करप्पभाए, वालुयप्पभाए, अहेसत्तमाए य होज्जा, ५. अहवा रयणप्पभाए, सक्करप्पभाए, पंकप्पभाए, धूमप्पभाए य होज्जा, १. एक संयोगी के ७, द्विक संयोगी के २५२, त्रिकसंयोगी के ८०५, चतुष्क संयोगी के ११९०, पंच संयोगी के ९४५, षट्संयोगी के ३९२ एवं सप्त संयोगी के ६७ भंग होते हैं, इस प्रकार कुल ३६५८ भंग होते हैं। २. यह असंयोगी (एक संयोगी) प्रथम भंग है।

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