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युक्कंति अध्ययन
णवरं - एक्को अब्भहिओ उच्चारेयव्वो, सेसं तं चेव, (३५०)
चक्कसंजोगो वि तहेव, (३५०)
पंचसंजोगो वि तहेव, (१०५)
गवरं - एक्को अन्महिओ संचारेयव्वो जाय पच्छिमो भंगो।
अहवा दो वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए, एगे असत्तमाए होज्जा (१०५)
१. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए जाव एगे तमाए होज्जा,
२. अहवा एगे रयणप्पभाए जाव एगे धूमप्पभाए एगे आहेसत्तमाए होज्जा,
३. अहवा एगे रयणप्पभाए जाब एगे पंकपभाए. एगे तमाए. एगे अहेसतमाए होज्जा ।
४. अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करयभाए, एगे वालुयप्पभाए एगे धूमपभाए जाव एगे अहेसत्तमाए होज्जा,
५. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे पंकप्पभाए जाव एगे अहेसत्तमाए होज्जा,
६. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए जाव एगे अहेसत्तमाए होज्जा ।
७. अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए जाव एगे असत्तमाए होज्जा (९२४) विया. ९, उ. ३२, सु. २१ ८९. सत्त नेरइयाणं विवक्खा
प. सत्त भंते! नेरइया नेरइयपवेसणए णं पविसमाणा किं रयणप्पभाए होज्जा जाब अहेसत्तमाए होजा ?
उ. १-२ गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा,
अहवा एगे रयणप्पभाए, छ सक्करप्पभाए होज्जा । एवं एएणं कमेणं जहा छण्हं दुयासंजोगो तहा सत्तण्ह वि भाणियव्वं,
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विशेष- यहाँ एक का संचार अधिक करना चाहिए। शेष सब पूर्ववत् जानना चाहिए।
१. रत्नप्रभा आदि के संयोग वाले ३५ भंगों के साथ गुणाकार करने पर ३५० भंग होते हैं।
२. रत्नप्रभा के संयोग वाले ५ विकल्पों को १५ भंगों के साथ गुणा करने पर ७५ भंग,
( चतुष्कसंयोगी ३५० भंग) जिस प्रकार पाँच नैरयिकों के चतुष्कसंयोगी भंग कहे गए हैं उसी प्रकार छह नैरयिकों के भी चतु:संयोगी भंग जान लेने चाहिए।' (पंचसंयोगी १०५ भंग) पांच नैरयिकों के जिस प्रकार पंचसंयोगी भंग कहे गए हैं उसी प्रकार छह नैरयिकों के भी पंचसंयोगी भंग जान लेना चाहिए।
विशेष- इनमें एक नैरथिक का अधिक संचार करना चाहिए यावत् अन्तिम भंग (इस प्रकार है)
अथवा दो वालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में एक तमः प्रभा में और एक अधः सप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। (इस प्रकार पंचसंयोगी कुल = १०५ भंग हुए। २ (छः संयोगी ७ भंग-)
१. अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में यावत् एक तमः प्रभा में उत्पन्न होता है।
२. अथवा एक रत्नप्रभा में यावत् एक धूमप्रभा में और एक अधः सप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है।
३. अथवा एक रत्नप्रभा में यावत् एक पंकप्रभा में, एक तमः प्रभा में और एक अधः सप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है।
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४. अथवा एक रत्नप्रभा में एक शर्कराप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में एक धूमप्रभा में यावत् एक अथ सप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है।
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५. अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक पंकप्रभा में यावत् एक अधः सप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है।
६. अथवा एक रत्नप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में यावत् एक अधः सप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है।
७. अथवा एक शर्कराप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में यावत् एक अधः सप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है । ३ (९२४)
८९. सात नैरयिकों की विवक्षा
प्र. भन्ते ! सात नैरयिक जीव नैरयिक प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होते हैं यावत् अधः सप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं ?
उ. गांगेय ! वे सातों नैरयिक रत्नप्रभा में भी उत्पन्न होते हैं यावत् अधः सप्तमपृथ्वी में भी उत्पन्न होते हैं। *
द्विकसंयोगी १२६ भंग - )
अथवा एक रत्नप्रभा में और छह शर्कराप्रभा में उत्पन्न होते हैं।
इस क्रम से जिस प्रकार छह नैरयिक जीवों के द्विकसंयोगी भंग कहे हैं उसी प्रकार सात नैरयिक जीवों के भी द्विकसंयोगी भंग कहने चाहिए।
शर्कराप्रभा के संयोग वाले ५ विकल्पों को ५ भंगों के साथ गुणा करने पर २५ भंग,
वालुकाप्रभा के साथ ५ विकल्पों को १५ भंगों के साथ गुणा करने पर ५ भंग, इस प्रकार ७५+२५+५= कुल १०५ पंच संयोगी भंग हुए।
३. एक संयोगी ७ भंग, द्विक संयोगी १०५, त्रिकसंयोगी ३५०, चतुष्क संयोगी ३५०, पंच संयोगी १०५ और षट्संयोगी ७ ये सब मिलकर ९२४ प्रवेशनक भंग होते हैं।
४. इस प्रकार असंयोगी सात भंग हुए।