Book Title: Dravyanuyoga Part 2
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 774
________________ वुक्कंति अध्ययन ८६. चत्तारि नेरइयाणं विवक्खाप. चत्तारि भंते ! नेरइया नेरइयपवेसणए णं पविसमाणा किं रयणप्पभाए होज्जा जाव अहेसत्तमाए होज्जा? उ. गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव आहेसत्तमाए वा होज्जा।(१-७) १. अहवा एगे रयणप्पभाए, तिण्णि सक्करप्पभाए होज्जा। २. अहवा एगे रयणप्पभाए, तिण्णि वालुयप्पभाए होज्जा। ३-६. एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, तिण्णि अहेसत्तमाए होज्जा। (६) १.अहवा दो रयणप्पभाए, दो सक्करप्पभाए होज्जा। २-६. एवं जाव अहवा दो रयणप्पभाए, दो अहेसत्तमाए होज्जा।(१२) १. अहवा तिण्णि रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए होज्जा। २-६. एवं जाव अहवा तिण्णि रयणप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा।(१८) १. अहवा एगे सक्करप्पभाए, तिण्णि वालुयप्पभाए होज्जा। २-१५. एवं जहेव रयणप्पभाए उवरिमाहिं समं चारिय तहा सक्करप्पभाए वि उवरिमाहिं समंचारियव्वं ।(३३) ८६. चार नैरयिकों की विवक्षाप्र. भन्ते ! नैरयिक प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए चार नैरयिक क्या रलप्रभा में उत्पन्न होते हैं यावत् अधःसप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होते हैं? उ. गांगेय ! वे चार नैरयिक रलप्रभा में भी उत्पन्न होते हैं यावत् अधःसप्तम पृथ्वी में भी उत्पन्न होते हैं।(१-७) १. अथवा एक रत्नप्रभा में और तीन शर्कराप्रभा में उत्पन्न होते हैं। २. अथवा एक रत्नप्रभा में और तीन वालुकाप्रभा में उत्पन्न होते हैं। ३-६. इसी प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में और तीन अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं।२ (६) १. अथवा दो रलप्रभा में और दो शर्कराप्रभा में उत्पन्न होते हैं। २-६. इसी प्रकार यावत् अथवा दो रलप्रभा में और दो अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं।३ (१२) १. अथवा तीन रलप्रभा में और एक शर्कराप्रभा में उत्पन्न होता है। २-६. इसी प्रकार यावत् अथवा तीन रत्नप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। (१८) १. अथवा एक शर्कराप्रभा में और तीन वालुकाप्रभा में उत्पन्न होते हैं। २-१५. जिस प्रकार रलप्रभा का नरकपृथ्वियों के साथ योग किया, उसी प्रकार शर्कराप्रभा का भी उसके आगे की नरकों के साथ योग करना चाहिए। (३३) इसी प्रकार आगे की एक-एक (वालुकाप्रभा पंकप्रभा आदि) नरकपृथ्बियों के साथ योग करना चाहिए। यावत् अथवा तीन तमःप्रभा में और एक तमस्तमः:प्रभा में उत्पन्न होता है, यहाँ तक कहना चाहिए। (६३) (त्रिकसंयोगी १०५ भंग-) १. अथवा एक रलप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और दो वालुकाप्रभा में उत्पन्न होते हैं। २. अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और दो पंकप्रभा में उत्पन्न होते हैं। ३-५. इसी प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और दो अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं। (५) एवं एक्केक्काए समंचारेयव्वं । जाव (अहवा तिण्णि तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा।) (६३) १. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, दो वालुयप्पभाए होज्जा। २. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, दो पंकप्पभाए होज्जा। ३-५. एवं जाव एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, दो अहेसत्तमाए होज्जा। (५) १. इस प्रकार असंयोगी ७ विकल्प और ७ ही भंग होते हैं। २. इस प्रकार रलप्रभा के साथ १+३ के ६ भंग होते हैं। ३. इस प्रकार रत्नप्रभा के साथ २-२ के छह भंग होते हैं। (१२) ४. इस प्रकार रत्नप्रभा के साथ ३-१ के ६ भंग हुए यों रत्नप्रभा के साथ ६+६+६=१८ भंग होते हैं। ५. इस प्रकार शर्कराप्रभा के साथ १-३ के ५ भंग, २-२ के ५ भंग, एवं ३-१ के ५ भंग यों कुल मिलाकर १५ भंग हुए।(३३) ६. इस प्रकार वालुकाप्रभा के साथ भी १-३ के ४,२-२ के ४ और ३-१ के ४ यों कुल १२ भंग, पंकप्रभा के साथ १-३ के ३,२-२ के ३ और ३-१ के ३ यों कुल ९ भंग, तथा धूमप्रभा के साथ १-३ के २,२-२ के २ और ३-१ के २ यों कुल ६ तथा तम प्रभा के साथ १-३ का १,२-२ का १ और ३-१ का १ यों कुल ३भंग होते हैं। ७. इस प्रकार रत्नप्रभा के १८, शर्कराप्रभा के १५, बालुकाप्रभा के १२, पंकप्रभा के ९, धूमप्रभा के ६ और तम प्रभा के ३ ये द्विकसंयोगी कुल ६३ भंग हुए। ८. इस प्रकार १-१-२ के पाँच भंग हुए।(९)

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